समय का सफर

सफर में भी मकां में भी
शुकूं में भी परेशां भी 
उदासी का सबब तुमसे
मंजिल की बहर तुमसे
खोना और पाना भी
संकल्पों का समर्पण भी
त्यागी हर बिरासत है
अपनाया उसूं भी तु
भेदों से विभेदों तक
छुपा भी जो खुला भी सब
समय की एक सीमा है
कुछ दिन बस ठहर तु सब
बादल जो वो बरसा है
नदी फिर जो ऊफानों पर
मेरे समुन्दर की लहरें हैं
तु ही बस एक नाविक है

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