तमाशबीन

राख होना ही कहाँ
खाक मिल जाना है एक दिन
जलती हुई चिता पर
फिर भाप बन जाना है एक दिन

इस समर में जीतकर भी
सब हार जाना है एक दिन
कुछ यतार्थ की नीव रखकर
इतिहास बन जाना है एक दिन

बोझ जिम्मेदारी का ढोहकर
फिर अकेले रह जाना है एक दिन
हसना है हसाना है 
फिर तमाशबीन बन जाना है एक दिन

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

रिश्तों को अमरत्व