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रंगमंच

वे जाने वाले चले गये पर मेले खामोश रहें । एक जीवन जीया है हमने इन खाली रंगमंचों पे  सब राहों से दूर रहे  और मन सब विरान रहे एक शाम सुहानी देखी है इन खाली से बाग़ानों में  लोग यहाँ सब भूल गये  और शक्लें सब वो दूर रही  एक मुखड़ा देखा है हमनें हर ख़्बावों की तामिलों में

बोलती शान्ति

अधधुले दाग हैं मन की गहराई में जो मिटाते रहे पर मिटा ना सके दूर तन्हाई ने जब भी आवाज दी  वो सुनायी पडी बस तुम्हारे लिए।  साथ चलता है साया परछाईं में जो छूडाते गये पर छुड़ा ना सके सुनी राहों ने जब भी आवाज दी  पार दिल के गयी बस तुम्हारे लिए। मौन में बोलती शान्ति उमडायी है जो गुनगुनाते गये पर कही ना गयी जो कहानी कभी भी लिखी ना गयी मन में बसती रही बस तुम्हारे लिए ।

शुरु कर

सूखे दरख़्तों पर आसियां बनाया है बंजर में कोंपल का इंतज़ार है जल रहा हैं कुछ तो कहीं  और सब कुछ थमा सा है। आ कुछ तो शुरू कर सोच की दृढ़ता कही ग़ायब है  जाती आँखों को रंगों का इंतज़ार है सब तो बह गया है कहीं  शहर की भीड़ ग़ायब है आ कुछ तो शुरू कर मन के कुछ प्रश्न हमेशा अधूरे रहे उन नज़रों को पढ़ने का इन्तज़ार हैं भावनाऐं अशान्त सी हैं कही सब कुछ लिख तो दिया आ कुछ तो शुरू कर

हलाहल

जाया कहाँ जाता है पहाड जब भी बुलाते हैं  सब तो तेरे जैसे हैं मन में हैं पर दूर बहुत हैं  कठिन कब था कोई भी चोटी जीत जाना बढ़ते कदम थे हरदम पर साथ न पहचाना ढलान पर लुडकते पत्थरों ने कहा था कभी  बढ़ तो जाओगे  पर लौट ना पाओगे कभी  उस नदिया सा स्वच्छन्द फैलता तो रहा तेरा समुन्दर मेरे अस्तित्व को चुनौती दे गया लगता है मथना होगा तेरे समुन्दर को फिर से  मैं हलाहल लिए फिर लौट जाना चाहता हूँ 

एक मोड़

वो जो घुल सा गया है मुझमें आसपास ही रहता है हर पल  आधी अधूरी कहानी सा कोई  एक विराम पर रोके है मुझे  वो जो अंबार लगाये बैठा है बादलों सा घेरे रहता है हर पल पहाड़ी घुमावदार रोड पर कोई एक मोड़ पर रोके है मुझे वो जो गुज़र गया बिन थमें  लौटता सा लगता है हर पल  घुप्प अंधेरी रातों में कोई  उस तारे सा साथ चलता मेरे

सम्मानों के दरीयाँ

कुछ संघर्ष मौन होते हैं अपनेआप से लडे जातें हैं अहसासों की ज़मीं होती है  स्नेह का द्वदं नही लगता जब  जीताना उसे था  मैं हार जाना चाहता था  अब मैं हार सा गया हूँ  पर वो जीता नही लगता  कुछ रिश्ते हमेशा मौन होते हैं होते हैं पर जताये नही जाते सम्मानों के दरीयां होते हैं  पर कोई पार करता नही लगता 

निशाँ

जब भी मन से लगा दौड़ लूँ पास तक  तु दिखाता रहा दूरियों के निशां  बर्क बिखरी रही फिर भी सुखा रहा मन रंगाता रहा छिट के दो निशाँ  लौट जाने पे सूनी सी बस्ती रही  तु बुझाता रहा दीप के सब निशाँ  चाँदनी थी कहीं फिर भी स्याही रही मन जगाता रहा रात के वो निशाँ  खोली खिड़की कही साँझ के आस की  तु दबाता रहा आस के सब निशाँ  खाली कोनों मे ढूँढा जिसे हर पहर रात आयी बहा ले गयीं सब निशाँ 

मौन

मन की आवाज ने यूं पुकारा तुझे जब भी खामोश थे सोचते ही रहे  पास आकर जहाँ लड़खड़ाये कदम  वो कदम भी बड़े बस तुम्हारे लिये  मन में यूँ रुप को बस सजाया तेरे जब भी सोचा तो एक पावनता रही खोजा जाकर यहां भी उस स्नेह को वो स्नेह भी रहा बस तुम्हारे लिये  मन ने शाम-ओ-शहर यूँ पुकारा तुझे जब भी आवाज दी ना-सुनी ही रही बड़बड़ाया जहाँ बोलते मौन को  रहा मौन भी मन तुम्हारे लिये 

सन्देश

तु समुन्दर मैं पहाड ही रहा  कोई बह चला कोई खडा रहा  कोई रेत पर पदचिह्न बनाता  कोई दलदल में धँसा नीड़ रहा  तु लहरों में घूमता मैं रुका रहा  कोई भँवर में रहा कोई पार कर गया कोई खुली हवा  का झोंका रहा कोई जहाज़ पर अटका पंक्षी रहा  तु खामोश रहा मैं बड़बड़ाता रहा  कोई सुन गया कोई सुनाता रहा  पहाड़ों से आवाज़ टकराकर आती है खुला समुन्दर तेरा सन्देश लौटा ना सका 

सीख

उड़ा तो कब का जा सकता था पर पहाड जो धँसे रहे जड़ो में  समुन्दर की रेत में निशा बनाकर  मिटना भी नही सिखा  सोचा तो कुछ भी जा सकता था  पर मर्यादा रही गुमनाम रिश्ते की  सहेजकर  मन मे रखा है जिन्हें  भूलाना भी नही सीखा  चाहो तो सीमायें लाँघ सकता था  पर हिमालय रहा है विश्वास यहाँ  नज़रों ने गहरा संभाला है जिसे  उतारना भी नही सीखा