सम्मानों के दरीयाँ

कुछ संघर्ष मौन होते हैं
अपनेआप से लडे जातें हैं
अहसासों की ज़मीं होती है 
स्नेह का द्वदं नही लगता

जब  जीताना उसे था 
मैं हार जाना चाहता था 
अब मैं हार सा गया हूँ 
पर वो जीता नही लगता 

कुछ रिश्ते हमेशा मौन होते हैं
होते हैं पर जताये नही जाते
सम्मानों के दरीयां होते हैं 
पर कोई पार करता नही लगता 

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता