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मेरा है

खोया पाया जो भी है यश अपयश सब मेरा है किया कराया जो भी है आरांभ अन्त सब मेरा है कार्य अकार्य उपकार्य मेरे सारांश सार परिणाम मेरे कर्ण जना जो मेरा है अभिमन्यु मरा वो मेरा है यह कुरूक्षेत्र भी मेरा है जो जिया मरा सब मेरा है आदि अनादि अंहकार मेरा कर्म प्रभाव अंधकार मेरा जो राह चुनी वो मेरी है वो मंजिल अदृश्य भी मेरी है

आखिरी लक्ष्य

समर शेष का रण नही हो भीतर लडता द्वंद नही हो कुछ इच्छाईयां मरी नही हों त्याग समर्पण किया नही हो वो दीपक अधजले रह गये मन अंधियारा जिससे न मिटा हो तु साथ समर्पण करता आया देह निशा का त्याग कर गया जीवन मृत्यु साथ लिए तु जन्मों का कोई साथ दे गया तु मन का आखिरी लक्ष्य रह गया तुझ संग जीवन जीतता देखा

विश्वविद्यालय आवेदन या रोजगार के अवसरों के लिए संस्थागत जिम्मेदारियाँ:

 आजकल शिक्षण संस्थानों  की जिम्मेदारियां है कि वो विद्यार्थियों के शैक्षणिक प्रमाण पत्र, ट्रांसक्रिप्ट्स , रेकमांडेशन लेटर और शिक्षा तथा अन्य समाजोपयोगी कार्यों में उनके लेखे जोखो को उच्य शिक्षा संस्थानों या रोजगार प्रदान करने वाली कंपनियों को मुहैया करवाए।  कुछ शिक्षण संस्थाए उनमे बड़ी गोपनीयताये बरतती हैं जबकि कुछ काफी ट्रांसपेरेंसी।  यूँ तो दोनों पक्षों को देखा जाय तो दोनों सही हैं , वो जो छात्र को बिना बताये सीधे उच्य शिक्षा संस्थानों या रोजगार प्रदान करने वाली कंपनियों को भेज देते हैं , या वो जो स्टूडेंट्स हो दिखाकर या तो उन्हें देते है या सीधे उच्य शिक्षा संस्थानों या रोजगार प्रदान करने वाली कंपनियों को भेज देते हैं।   वो जो अपने पास सारे कागज़  गोपनीय तरीके से रखते हैं उनका मानना होगा कि स्टूडेंट्स कागज़ों के गलत उपयोग न कर दें या फिर वो उससे अपनी जिम्मेदारी मानते हों । दूसरी तरफ वो संस्थान जो स्टूडेंट्स के शैक्षणिक प्रमाण पत्र, ट्रांसक्रिप्ट्स , रेकमांडेशन लेटर और शिक्षा तथा अन्य समाजोपयोगी कार्यों में उनके लेखे जोखो को जरूरत पड़ने पर  स्टूडेंट...

तुझतक

शाम सुहानी रातें लम्बी अक्सर पूछा करती हैं सुबह सबेरे चढी दुपहरी  हाल मनों का कहती हैं सूना आँगन भरा हुआ है मन अन्दर तु बसा हुआ है शब्द सभी पहचाने तेरे  कविता गीत रचे सब तेरे घुल मिल गये वो शब्द हैं तेरे आयाम नये आदर्श हैं तेरे एक डगर बस जाती तुझतक सफर सुहाना मंजिल तुझतक तु आदि और अन्त है तुझतक आदि शक्ति! उम्मीदें तुझतक

समसामयिक विषयों पर चर्चा और कौशल निर्माण:

 समसामयिक विषयों पर चर्चा और  कौशल निर्माण: शिक्षा का स्तर यूँ तो पिछले २० ३० सालों  में बहुत बढ़ा है पर आज भी शिक्षा की उपलब्धता  और कौशल निर्माण में उतनी सफल नहीं है जितनी कि समय की मांग है ।क्लासरूम में  समसामयिक विषयो पर चर्चा का समय कुछ ही शिक्षा संस्थान दे पाते हैं जिसकी बड़ी वजह विषयवस्तु का भूत व्यापक होना है । ऐसे में शिक्षक या तो विषय वस्तु को ही पूरा कर सकते हैं या समसामयिक विषयों पर चर्चा कर या प्रयोगात्मक परिक्षण कर  कौशल निर्माण ही कर सकते हैं।  ऐसे में शिक्षक और  शिक्षा संस्थान करें भी तो क्या ?   समसामयिक विषयों पर चर्चा के लिए आजकल शिक्षा संस्थानों में फेस्टिवल ऑफ़ होप,  टेड एक्स , मॉडल यूनाइटेड , ड्रामा , थिएटर क्लब , पब्लिक स्पीकिंग कार्नर, पब्लिक फोरम डिबेट आदि कई ऐसे अवसर दिए जाते हैं तो स्टूडेंट्स को सोचने कि शक्ति और विचारों का खुलापन देते है । गंभीर विषयों पर सोच समझकर जब एक युवा अपनी बात रखता है तो  तो न सिर्फ उसकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती है बल्कि देश दुनियां की दिशा और दशा का भी एक खांचा उसके मन में बन जा...

"न मातुः परदैवतम्"

 दुनियां मातृत्व और पितृत्व  प्रार्थमिकताओं के दो समाजों में बटीं हुई है। मनुष्य जीवन के पढ़ाई से लेकर अन्य सभी पहचान पत्रों में कहीं पिता का नाम लिखा जाता है कभी माँ का , कई दस्तावेजों में दोनों को नाम।  कुछ ऐसे भी दस्तावेज़ होते हैं जहा केवल एक ही नाम की जरूरत है , ऐसे में कौन सा नाम ज्यादा उन पहचान पत्रों में ज्यादा उचित है ये एक विचारणीय विषय है।  पिता की संपत्ति पर बच्चे के हक़ को बनाये रखने के लिए शायद ये उचित लगे की आदमी  की  पहचान के कागजों में उसके पिता का नाम लिखा जाय।  पर जिस तरह आज समाज बदल गया है , परिस्थितियां बदली हैं और  कई शादियां बहुत लम्बी  टिक नहीं पा रही हैं , ये देखकर लगता है कि बच्चे की पहचान सबसे ज्यादा माँ से है इसलिए ऐसे पहचान पत्रों में जहाँ माँ न नाम नहीं है वहाँ माँ का नाम लिखा जाना चाहिए । पितृत्व  प्रार्थमिकताओं वाले  समाजों में ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर समय और काल की मांग यही लगती है।  यूँ तो माँ पिता में कोई तुलना नहीं हो सकती और  सामाजिक पहचान के लिए दोनों जरूरी  हैं पर जीवन पर ज...

उच्य शिक्षा के बदलते सोपान

 उच्य शिक्षा के बढ़ते सोपानों में आज की युवा पीढ़ी और परिवारों में एक होड़ सी लगी है कि कोण उच्य शिक्षा संसथान अच्छी रैंकिंग रखता है , किस देश में पढ़ाई अच्छी है, किस देश कि फीस कम है , किस देश में स्कालरशिप और जॉब कि संभावनाएं ज्यादा हैं और किस देश में सुरक्षा ज्यादा हैं।  अच्छी इंग्लिश शिक्षा कि बात  की जाय तो आज भी एशिया के लोगो के लिए मुख्यतया चार देश  अमेरिका, इंग्लैंड , कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ही  प्रमुख  हैं।  एशिया में सिंगापुर और हांगकांग भी बहुतायत में स्टूडेंट्स को आकर्षित करते  रहे हैं।  इसका मुख्या कारण इन देशो में शिक्षा की भाषा इंग्लिश हैं।   वहीं  एशियाई बड़े देश इंडिया और चीन अपनी अधिक जनसख्या के कारण अपने ही छात्रों के लिए यथोचित उच्य शिक्षा संसथान ने देने के कारण बाहरी छात्रों की उतना आकर्षित नहीं कर पाए हैं।   लेकिन समय से साथ के अब भारत चीन के अलावा नीदरलैंड , जापान, नूज़ीलैण्ड , फ्रांस,  स्पेन , इटली , रूस आदि देश भी शिक्षा को बढ़ावा देकर विदेशी छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।  जिससे वि...

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( ए आई) रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है?

क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए  आई ) युवा मस्तिष्क की रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है? आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस के ज़माने में ये कहना बड़ा मुश्किल है कि आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस रचनात्मकता को बढ़ावा दे रही है , मार रही है या चुनौती दे रहा है? जीवल शैली को थोड़ा आसान बनाने के लिए सभी उम्र के लोग आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रहे हैं जो शायद कही से गलत नहीं है और सीखने कि प्रक्रिया को विस्तार देते हैं।  पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत  जल्दी  शिक्षा में उपयोग होना कई चुनौतियां खड़ी कर रहा है । शिक्षकों ने उतनी जल्दी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रयोग करना नहीं सीखा जितनी जल्दी विद्याथियों ने सीख लिया। ये सब जनरेशन गैप का प्रभाव है युवा पीढ़ी टेक्नोलॉजी से सम्बंधित बातों में जल्दी महारत हासिल करती है ।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को टेक्नोलॉजिकल सुगमता का एक अच्छा प्रयोग भी कहा जा सकता है पर वर्तमान पीढ़ी जिस तेजी से  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग हर काम में बिना सोचे समझे कर रही है वो सोचनीय है और प्रश्न तब और गंभीर हो जाता ...

कल्पना की वास्तविकता

 एक आधा अधूरा चिंतक होने के नाते कई बार सोचता हूँ की क्या कल्पना में कोई  वास्तविकता छुपी हुई है । क्या कल्पना से वास्तविकता का जन्म हो सकता है। आखिर कल्पनायें हैं क्या ? सिर्फ मन की गूढ़ता या किसी यथार्थ का चिंतन।  कल्पनाओं के झाड़ पर बैठकर कई बार कविता का सृजन करते समय मुझे लगता है की क्या कल्पना मानव मन की सृजनशीलता की पहली कड़ी है। क्या कल्पनाएं झूट का पुलिंदा मात्र हैं और  सत्य सदैव अपरिवर्तनीय होता है या फिर कल्पनाओं में भी जीवन का एक सार है , एक गूढ़ता है और एक रचा बसा संसार है ?  कभी कभी मस्तिष्क मन में बनीं कुछ सोचों, कल्पनाओं या  छवियों का मूल्यांकन करता है जिन्हें वह संसाधित करना चाहता है , कल्पना वास्तविकता की सीमा का आधार सा लगती है । यदि कल्पनाओं के संकेत सीमा पार कर जाता हैं , तो मन  सोचता है कि यह वास्तविक है यदि ऐसा नहीं होता है, तो मन  सोचता है कि यह काल्पनिक है। काल्पनिकता कभी कभी यतार्थ को जन्म देती सी लगती है । जान तक मन विचार शून्य है तब तक न कल्पना का आधार है न वास्तविकता की परिधि।  वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए कल्...

हस्ताक्षर

गंगा की पावन धारा में एक गोता खाकर आया हूँ हरसिंगार के फूलों की खूशबू में घुल आया हूँ सांसों में सांसे देकर कुछ पल जीकर आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कोमल से कुछ फूलों की पौध रोप कर आया हूँ धरती में जो बीज पडें थे उन्हे जगाकर आया हूँ स्मरण की आयामों का मन चित्र साथ में लाया हूँ मैं स्नेह की गुफाऊ  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कविता की कुछ नई पंक्तियां शब्दों में लिख लाया हूँ समर्पण की वही कहानी गहरी दोहराकर लाया हूँ सपनों के ताने बानों को थोडा गहरा करके आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ