वो बचपन

हर देहरी पर फूल चढ़ाता 
वो बचपन जिया है हमनें 
हर घर आबाद रहे ख़ुशियों से
उन गीतों को गुनगुनाया है हमनें

गैंहू की लहराती फ़सलों सा
वो बचपन जिया है हमनें
पुकारते सरसों की पीत्तिका से 
उन तितरों को सहलाया है हमनें 

दवाग्नि से बूरांस खिले देखें हैं 
बु्ग्यालों के मख़मल में हमने 
ब्ह्मकमल के जज़्बाती दरबारों में 
फ्योली सा जीवन जिया है हमनें 

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