क्या बताऊ तुझे
क्या बताऊ तुझे कितना थम सा गया
रात के बाद वो सुबह आयी नहीं
सीधे रस्ते ने ठोकर नवाजी हमें
मंजिलो का पता जाने गुम सा रहा
कोरे कागज पे लिखी कोई बात जो
हमने देखी कहीं ना पढ़ी ही गयी
दर्द आँखों से अबतक यूँ बह ना सका
मन का दरिया कहीं फूटता सा रहा
खालीपन ने कहा बात लम्बी सी है
ये फ़साना अधूरा रहेगा सदा
मौन मन ने कहा रोले 'जिकुड़े' जरा
गम कि स्याही कभी भी मिटेगी नहीं
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