पत्थर राहों का

 कभी बाहें लगाता है 

कभी बाहें छुड़ाता है 

सवालों का हक़ जिसको 

वही चुपचाप रहता है 


कभी सबरंग चढ़ाता है 

कभी बेरंग कर देता 

अश्कों की है परिभाषा 

वो ही जीवन बदलता है 


जिसे मदमस्त बहना था 

सिकुड़कर छोर बैठा है 

कोमल मन सहृदय है 

वो पत्थर सा बना रहता


अल्हड था जवानी में 

तपस्वी सा है बन बैठा 

मन का एक निगहबाँ है 

वो ही दूरी में रहता है 


जिसे जाना है वो जाये 

ठहरना है ठहर जाये 

पत्थर उन ही राहों का 

हजारों ठोकरें मेरी 

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