कहते कहते
वो जो तु कहते कहते रुक जाता है
वोही अपनापन तुझसे दूर जाने नही देता
न जाने क्यूँ आज भी एक सच्चाई सी लगती है
कौन है ये पूरब का बटोही यहाँ
वो निर्वाह करते आये थे हर रिश्ते
रावण ही सही पर मन को कभी जीतने न दिया
न जाने क्यों इस हार मे एक जीत थी
कौन है ये खुशियों का बाज़ीगर यहाँ
सबकी अपनी सीमाएँ है सबका राज है
पराया ही सही पर मन के क़रीब था
न जाने क्यों तुझ तक सोच जाती है हर बार
कौन है ये अपनो सा पराया यहाँ
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