बाक़ी बचे स्वप्न

तिमिर से गोधूली के सारे सपने
अब नही आते 
बाक़ी के स्वप्न सच नही होते 
दिवसीवसान पर पक्षियों की तरह
घर को लौट आता हूँ 
पर वो घर सच मे घर नही होते 
दिन के सहरा में चमकता है 
कुछ दरिया जैसा 
पर वो आस को बढ़ाता नही 

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