छुवन की कोमलता

 पल पल दिन भर मन में रहता 

चादर सा तन पर ओढ़े वो 

सांसों की गर्माहट तन पर 

विचारों में शीतलता वो 


कण कण भरता पानी जैसा 

रूप स्नेह उड़ेलता वो 

बाँहों की वो कसक तन पर 

छुवन की कोमलता वो 


रज रज जमता मन आँगन में 

प्रीत शक्ति समेटता वो 

आवाजों की कामुकता पर 

चौखट की अर्घ पूजा वो 


तम तम उगता तिमिर एक सा 

आस अभिलाष बढ़ता वो 

निशानों की उनमुग्दता पर 

स्वर भवरे सा अभिवादन वो 


मंगल सुमंगल गीत एक सा 

परिणय में बांध जाता है 

छोर नदी के दो किनारों पर 

आत्मभाव का संपादन वो 

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