यादें बोलती नही
वक़्त अक्सर ख़ामोश रहता है
अपनापन गुमशुम सा रहता है
यादें बोलती कहाँ है
सबकी दुनियाँ अपनी है पाने को
बीते पलों का ज़िक्र दबा सा है
कल अनायास ख़्यालों मे रहता है
पीड़ा बोलती कहाँ है
सबकी अपनी बिवांरिया है छुपाने को
वो घर वो छज्जा सब विरान है
खिड़कियां जालों से भर सी गयीं होंगीं
सूनापन दिखता कहाँ है
सबके अपने गुमखाने है दबाने को ...
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