असीमित

मैनें लिखा है जितना तुझे 
चाहा है असीमित उससे
भावनाओं का ठहराव तो नही रहा
पर बह आया हूँ दूर उसमें

मैनें देखा है जितना तुझे 
सोचा है असीमित उससे
अपराधों को आत्मसात तो नही किया
पर अहसासों को सजाया है उसमें

मैनें छूआ है जितना तुझे 
महसूस किया है असीमित उससे
विचारों को बहने तो नही दिया 
पर उम्मीदों को जगाया है उसमें 

मैने पाया है जितना तुझे 
माँगा है हर दर असीमित उससे
मिलना न मिलना नसीबों का खेल है
पर कमी नही की हैं कोशिशे॔ उसमें 

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