उन रास्तों पर
वो निशाँ आज भी
बाक़ी है उन रास्तों पर
जहाँ कभी वो रुठा सा दिखा
कभी स्नेह बिखेरता सा लगा
वो मंज़र आज भी
फैले है उन रास्तों पर
जहाँ तु कभी ठिठक जाता था
कभी मुँह मोड़ सा देता था
वो अनकही बातें आज भी
बुलाती हैं उन रास्तों पर
जहाँ कभी गुमशुम गुज़र जाता था
कभी हँसी बिखेरकर जाता था
वो नज़रें अब भी ताक़ती हैं
झांकती हैं उन रास्तों पर
जहाँ सबकुछ ठहरा सा है
और तु छोड़ के जा चुका है
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