बन्धन

लहर हूँ लौट के आऊंगा
नदियाँ हूँ बहा ले जाऊँगा 
तुम मन कहीं और लगा लो
याद हूँ पास बुला लूँगा 

नजर हूँ देख के आऊँगा 
साँस हूँ साथ में जाऊँगा 
तुम खो जाओ गुमशुम राहों में
आवाज़ हूँ पास बुला लूँगा 

हिमालय हूँ उठ ही जाऊँगा 
पहाड हूँ दरक भी जाऊँगा 
तुम कोशिशें दूर रहने की हज़ार करो
पेड़ हूँ ज़मीं का बन्धन न भूल पाऊँगा 

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता