प्रेम
प्रेम के प्रतिरूप रहे हैं अनेक
प्रेमी, प्यार और सर्वस्व रहा
कोई प्रेमी बना किसे प्यार मिला
स्वत: ही सर्वस्व पा ही गया
वो जो सबकुछ हार गया
राधा का प्रेम अनमोल रहा
रुक्मणी को अपना प्रेमी मिला
वो मीरा थी जिसको ज़हर मिला
अस्तित्व गया सबकुछ ही मिटा
पर सर्वस्व अपना पा ही लिया
प्रेम के रुप अनेक रहे
जो सत्य रहे पूजते ही रहे
मिलना खोना चलता ही रहा
पाना बिछड़ना लगा ही रहा
और मनों मे प्रेम खिलता ही रहा
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