आपदा आखों देखी
आपदा आखों देखी
यह 14 जून 2013 की दोपहर थी जब मैं उत्तराखंड अपने घर पहुंचा- मेरे महान राष्ट्र का एक खूबसूरत हिस्सा, तीर्थयात्रा का स्थान, हिमालय के ग्लेशियरों के लिए जाना जाने वाला-मोरेनेस- हिमनद , फूलों की घाटी का राज्य, कई बिल्डरों के लिए ड्रीमलैंड और सबसे महत्वपूर्ण मेरा मूल स्थान ' म्यरा दांडी कठियूं कू देश , म्येरू गढ़देश'। मेरी इस यात्रा में केदारनाथ जाने की योजना थी।पर अगले दो दिनों के भीतर मैंने सबसे बड़ी आपदा देखी , वह दर्द मैं हमेशा महसूस करता हूं, मैंने अपने लोगों की दुखों की सीमा देखी, मुझे प्रकृति की कठिनाई महसूस हुई, मैंने बीमार राजनीतिक इच्छाशक्ति को देखा और अधिकारियों के प्रयासों को मारा हुआ पाया । अगले 6 दिनों में मैं बसुकेदार (भटवाड़ी) से सोनप्रयाग (त्रिजुगीनारायण) (… .. 50 गांवों से अधिक) के बीच कई गाँवों में घूमता रहा। ज्यादातर गाँवों में मुझे औरत की भयानक रोने की आवाज़ और बचे हुए आदमी का गुस्सा सुनाई देता रहा। मैंने सेना के जवानो और 5 हेलीकॉप्टरों को जाख, नाला, सेरेसी और फाटा के विभिन्न स्थानों पर लोगों को ले जाते देखा है। मैंने अपने सिर और घर के ऊपर हेलीकॉप्टर उड़ते हुए देखे हैं।
इस दर्द को समझाने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है, कि ये भारत में एक सबसे बड़ी आपदा है और न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पूरे देश के लिए इस दर्द को हमेशा के लिए छोड़ दिया है।
एक सरकार ने बिना किसी तैयारी, बिना किसी दूरदृष्टि और बिना किसी प्रयास के उस आपदा के क्षेत्र में काम किया था। उस समय कोई ऐसा नहीं था जिसे हम सुन सकते थे न ही हमें सुनने का कोई अधिकारी था और न ही लोगों के दर्द को महसूस करने वाला कोई था।
गुप्तकाशी में एक अस्पताल था जहाँ 6 बेड थे। हम कुछ लोगों को अस्पताल ले गए और डॉक्टर ने हमें इन लोगों को जमीन में दरियो में रखने के लिए कहा (.. मैंने ऐसा किया ...)। मैं पहले 4 दिनों तक बिना किसी उचित दिशा निर्देशों पर काम करने वाले कुछ एनडीआरएफ जवानो को तत्परता से काम करते हुआ जरूर देखा । पहले ४-५ दिनों मै श्रीमान हरक सिंह जी , डॉ तरुण विजय जी , पूर्व विधायक श्रीमती आशा नौटियाल जी सहित कुछ राजनीतिज्ञों से मिला और बाद डॉ रमेश पोखरियाल को क्षेत्र मै देखा। 6 दिनों के बाद तत्कालीन केदारनाथ विधानसभा सदस्य सुश्री शैला रानी को भी लोगो का हाल पूछते और लोगो के गुस्से का सामना करते देखा । मैंने सुना है कि उन दिनों राहुल गांधी जी और मोदी जी ने भी हवाई सर्वे किया था ।
आपदा के तीसरे दिन के बाद ये भी सुनने मै आया कि कुछ नेपाली, लोगों और शवों को लूट रहे हैं ... (जिसमे कुछ स्थानीय लोग भी शामिल थे )
छह दिनों के बाद बचाव और सहायता सामग्री के साथ कुछ ट्रकों को क्षेत्र में आता देखा इसी बीच केदारनाथ से जंगलो के रस्ते कई लोगो को वापस केदारघाटी में अपने लोगो को आते देखा । हर किसी लौटने वाले को एक अजब डर के साये मै देखा ।
अपने कुछ लोगों के माध्यम से मैं कुछ टीवी चैनल को आपदा के बारे मै बता रहा था । साथ ही गुप्तकाशी में मैं कुछ टीवी पत्रकारों को ये कहते भी सुना कि "अब इस कहानी के पैक-अप करने का समय है”।
जब मैंने एक माँ को बिना आंसू के, एक बेटे को बिना भावनाओं के , बिना शब्दों के पिता को और बिना सांसो के एक बहन और बीबी को उस आपदा के दौरान देखा
उस आपदा में स्थानीय लोगों की कई मौतों को गिन सकता हूं ... (जिन्हें मैं जानता था) और अनगिनत पर्यटक जो ये तीर्थयात्रा करते हैं। एक टूरिस्ट बस में एक महिला ने मुझे बताया कि वे 42 लोग साथ आये थे अब सिर्फ 6 वापस लौट रहे हैं ... एक कार चालक अपने दो कैनेडियन पर्यटकों को खोज रहा था और वापस खाली चला गया था।
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कुछ दिनों बाद २९ जुलाई को मै वापस आ गया और आते समय मेरी माँ ने मुझे फिर कभी जून में भारत नहीं आने के लिए कहा ...
हम उत्तराखंड के लोगों को राजनेताओं और राजनीतिक व्यवस्था से नहीं बल्कि प्रकृति से कोई शिकायत नहीं है… .. वापस लौटते समय मैं मायाली और टिहरी बांध की को जोड़ती एक तरह से कच्ची रोड से आया था। तब मुझे पहली बार मुझे एहसास हुवा कि सही मै हम कितने दूर पहाड़ो में रहते है , विकास कहाँ हुवा और हमारी सरकारें और उसकी कार्यप्रणाली कितनी नाकाफी है।
दिल्ली आते ही जब पहाड़ की परेशानियों को मैंने अपने भाई को बताया उसने कहा कि वह अपने इकलौते बेटे को लोगों भविष्य मै भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करेगा।
मैं अब भी शायद जून में भारत का दौरा नहीं करने के लिए अपनी मां का आदेश नहीं मानूगा .. मैं दिसंबर और जून में भी वहां जाऊंगा ... मुझे पता था कि प्रकृति हमारे लिए और भी कई मुश्किलें पैदा करती रहेगी --- जो मैंने १९९१ के अपने शोध क्षेत्र में भी लिखा था और जिसके लिए मुझे युवा भूगोलवेत्ता स्वांतना पुरुस्कार भी मिला थ।
पहाड़ का जीवन किता भी कठोर हो पहाड़ी आज भी पहाड़ से प्यार करता है , आज भी अपने एकलौते बैठे को भारतीय सेना मै भेजने के लिए तत्पर रहेगा और हमेशा राष्ट्र प्रेम सर्वोपरि रहेगा ………………… ..
पर क्या सरकारी रवैया कभी बदलेगा।।। कभी सही मै उत्तराखंड का विकास होगा ?
(ये मैंने उत्तराखंड आपदा के समय २०१३ मै लिखा था )
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