समर्पण
जो घुट घुट मैंने जिया है कह दूंगा सारी बात तुम्हें
वो जो भी गीत लिखे मैंने अब मीत मिलन की बेला है
हर अक्षर अक्षर बोलेंगे मन आवाज समर्पण कर लेना
तु बोल भी देना अब साथी पल भर को मुझे सुला देना
जो पल पल मैंने सोचा है कह दूंगा सारी बात तुम्हें
वो जो भी गुमशुम सोचा था अब कहने की बेला है
हम तुम दोनों ही होंगे जब तोड़ वो सीमा सब लेना
तु कदम बढ़ाना अब साथी पल भर को गले लगा लेना
जो चुप चुप मैंने देखा है कह दूंगा सारी बात तुम्हें
एकटक जिसको देखा था अब दिखने की बेला है
नज़रों के अवरोध न होंगे आंसू थोड़ा छलका जाना
तु एक समुन्दर मेरा है आगोश में पीर को ले लेना।।
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