आसमां मेरा

गोदी में ना सो पाया
बाहों में ना भर पाया
आसमां सा फैला था
विस्तार वो सागर सा है

खुशबु से कब तर पाया
बातों को कब कह पाया 
शान्ती सा व्यापक है जो
गुमनाम मनन वो मन का है

सांसो का उठना गिरना
होठों का कुछ कह जाना
चुप रहने को कहता है जो
खामोश मनों का चेहरा है




Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता