भूल हुई
मन रे तुझसे भूल हुई
तूने समर्पण करवाया है
छीना है वक़्त किसी का तो
किसी पर वक़्त गंवाया है
तूने समर्पण करवाया है
छीना है वक़्त किसी का तो
किसी पर वक़्त गंवाया है
शब्द गढ़े हैं अधूरे से
आधा सा जीवन जीया है
छीनी है ख़ुशी किसी की तो
किसी पर ख़ुशी लुटाई है
राह नहीं चले हैं पूरा
मंजिल दूर अदृश्य रही
हाथ पकड़कर चले हैं किसी का
तो किसी से हाथ छुड़ाया है
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