खाली है

शून्य के शिखर पर
आशाओं के उन्मादों से
रची बसी एक दुनियां में
सफर अकेले चलना है

खाली पडे मकानों में
खामोंशी के शोरों से
सजे धजे बाजारों में
मोल भाव खुद करना है

रीते से कुछ बस्तों में
डूबी यादों की नावों से
सुनसान पडे चप्पों पर
रोगन रंग फिर करना है

फिर लिखना है गीत वही
फिर शब्दों का संसार वही
संघर्षो की जमी खडी है
फिर चलना है राह वही

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