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छाप

जब मन उड जाये कह जाये चल भीग भी लूँ तु बूँदें बनकर रिमझिम बरखा  या इन्द्रधनुष सा हो जाना आसमां भी दूर रहे  और धरती अम्बर मिल जायें मैं मिट्टी की सौंधी खुशबू  घुलमिल तुझमें खो जाऊ धूल भरी आँधी थम जाये  तरवर मुझको कर जाना लाख लपेटू लेप मै तन पर  तु अपनी छाप लगा जाना

चेतन

जो जन्म नही पर साथ दे गया एक अपना अहसास दे गया रिश्तों का एक बन्धन बाधें  वो हमको तुमको एक कर गया दिन जो भूले  पहर रात के थे अपनी सुधबूध खो बैठें जाते अहसास किया आँखों ने दबा हुआ काजल बह बैठा माँ तेरे तुझमें रूप अनेकों  चेतन अचेतन अहसास हजारों जब वो सब मिलकर याद आता है तुझ पर भरोसा बढ जाता है

दिवाली

ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी याद लायी तु मगर अपनों को नही लायी हर उजाला दीप है बस मनों सन्ताप है कब सजेगी थाल पूजा कब घरों में रोशनी सबके नामों के दीप बस जलते रहे बुझते रहे याद बस मनती रही उत्सव तो खाली रहे हर घरों के द्वार पर एक इन्तजार सा रहा कब आयेगी आहट तेरी कब सफर की मंजिलें घर रहा खाली सदा यूँ सफाई ही रही खुशी तो है बहुत पर कुछ कमी सी रही हर मनों में ख्वाब है उस किरण की आस है कब जायेगा वनवास ये कब सजेगी देहरी ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी

मन तुझ तक

शाम थकी सी लगती है तुझ बिन सुनी लगती है सूरज राहें तकता है ये मन तुझ तक जाता है  चाय अधूरी ठ़डी है कागज कुछ अलसाये हैं  सोच वहीं पसर जाती है ये मन तुझ तक जाता है बच्चों की किताबें हैं  चलचित्र सा जीवन है वक्त वहीं पर ठहर जाता है ये मन तुझ तक जाता है अधूरे से कुछ सपने हैं कम्बल बाँह पसारे हैं आँख वहीं पर लग जाती है ये मन तुझ तक जाता है रात कहीं घनघोर हुई है दो पहर कहीं पर बीत गये है जब बेबस सपने होते हैं  ये मन तुझ तक जाता है

तुमसे

तुमसे मेरे मन की शक्ति   तुमसे मन विश्वास भरा है तुम ही मेरे साथ चले हो  तुम ही मेरे राह की मंजिल तुमसे शंका तुमसे चिन्ता तुमसे गुस्सा प्यार तुम्ही से तुमसे दिन हैं तुमसे रातें  तुमसे सूरज चाँद तुम्ही से तेरे मेरे बीच ना कोई तेरे मेरे साथ ना कोई हम दोनो की राह एक है मंजिल एक सफर एक है आ आलिंगन कर जाते हैं गिला शिकवा भूल जाते हैं तु चूमे माथा लब में छू लूँ चल फिर दोनो घुल जाते हैं

अंश अंश

अहसास किया है मैंने बरखा की बूँदों का रोआँ रोआँ सा देखा है काया के ठहराव का पँखुडियों को छूआ है मन को टटोला है रोम रोम अपना पाया तेरा समर्पण देखा है गुदगुद सी परतों का मैनें रंग बदलते देखा है रूखी साख पर मैंने कोंपल खिलते देखा है निशां दिये हैं कई गर्भित अहसासो पर अंश अंश अपना पाया तेरा स्नेह पाया है

तेरे साथ की

मैं गंगा सा प्रवाह चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे बहना चाहता हूँ हो उत्तुगं शिखर कोई या गहरी सी कोई घाटी मैं तुझमें बस के तेरा होना चाहता हूँ मैं राह-ओ-राह भटकना चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे मंजिल चाहता हूँ हो सबसे मुश्किल कोई या आसान सी हो कठिनाई मैं तेरे नाम से तर जाना चाहता हूँ मैं छन्द-ओ-गीत लिखना चाहता हूँ सदा तेरी कहानी का किरदार चाहता हूँ हो अधूरा या वो छोटा ही सही लेकिन मैं तेरे साथ की सम्पूर्णता चाहता हूँ

प्राण

हम पत्थरों में प्राण भरते हैं निरन्तर मिट्टी को गाय को माँ कहकर पूजते हैं निरन्तर स्नेह को परिभाषित करे वो कान्हा देव है मेरा गले बिषसर्प  डाले है वो ही महादेव है मेरा  वो जूठे बैर शबरी से और सूरज भी निगल लूँ मैं पिता की साख पर घर छोडकर वनवास ले लूँ मैं मैं धरा को चीरकर रणक्षेत्र में बाणगंगा सा प्रवाहित उत्ताप शिखरों पर भी अनछुआ सा काकभूष्डी हूँ मैं राधेय हूँ कौन्तेय हूँ  शिखण्डी और रणछौड हूँ शत्रू की विजय सफल हो 'रामेशरण' का रावण हूँ यज्ञ की अग्नि जनति मै भू धरा वैदेही हूँ केवट सा दास हूँ सुदामा सा मित्र भी मै कालचक्र का काल हूँ समय का ठहराव भी हूँ सनातन मैं सदा निष्काम भी निष्प्राण भी मणिकर्णिका की अग्नि हूँ  त्रिरजुगी का यज्ञ भी शून्य का उदभव है मुझसे अन्नत का आसार भी मै मिलूँगा हर समय तु संगम की गंगा मेरी मै बहुँगा संग तेरे तु प्राण की वायु मेरी तु आदि है तु अन्नत है तु राधा मेरी कुन्ती तु ही स्नेह का अमरत्व तु मेरी कविता का हर शब्द तु

रिश्तों को अमरत्व

हे! सूर्यदेव हे! गंगा माँ हे रश्मिरथी हे कुन्ती माँ मैं अपराधी अन्यायी मैं स्नेह ने एक कर्ण जना था कहाँ था साहस सच का और लोकलाज का भय था लिंग भेद का ज्ञान नही था स्नेह ने एक कर्ण जना था कहाँ बनेगा अधिरथ मानव साथ  स्वयं की लाचारी परित्याग का भाव नही था स्नेह ने एक कर्ण जना था सीमाऐं साधी थी खुद को विश्वासों के कब कदम थे डगमग एकदूजे का साथ परस्पर  स्नेह ने एक कर्ण जना था सच कडवा था साथ अडिग था दुनियां वही और जबाब नही था निश्चय दामन थामा हमने  स्नेह ने एक कर्ण जना था माँ की ममता त्याग पिता का इन रिश्तों का शानी कब था पत्थर दिल अधरों पर ताले स्नेह ने एक कर्ण जना था रिश्तों की लाचारी बरबस खामोशी ने त्याग किया था प्रण साथ कर गया जीवन तेरे स्नेह ने एक कर्ण जना था जाते जाते अहसास दे गया हमको दो से एक कर गया रिश्तो को अमरत्व दे गया स्नेह ने एक कर्ण जना था

ताना बाना

तुम हम का यह ताना बाना  एक सम्पूर्णता दे गया साथ दिया जो तुमने हरपल  हल सारा दुख हो गया मुझमें समाया तुमको पाया  खुद में तेरा हो गया तुम हम का यह ताना बाना  जीवन जीना सीखा गया  आ मेरी परछाई बन जा छाया बन हम साथ रहें  थाम के अंगुली साथ बढें सफर हमसफर निभा जायें खुद को खोकर तुझमें समा लूँ आ कुछ ऐसा कर जायें   मेरा तुझमें नाम पता हो तुम पहचान हमारी बन जाओं