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Showing posts from June 23, 2019

नज़र में

जानता हूँ कि तुने भी  इन्तज़ार किया होगा तु मानें न मानें  कुछ तो असर हुआ होगा मनो के तार हैं  हर वक़्त जुड़े न भी तो क्या तु चाहे न चाहे  कुछ गुज़रा याद आया होगा  बातों के फसाने हैं हर वक़्त चुप भी रहे तो क्या तु देखे न देखे  कुछ तो नज़र आया होगा ये स्नेह की खायी है हरवक्त डूबकर कुछ नही होता तु रहे न रहे  कुछ तो अपनो सा लगा होगा 

गाता लिखता रहूँगा

सपनों के फ़लसफ़े  और यादों की हक़ीक़त  अमरत्व पा भी जाय तो क्या गुज़रे कारवाँ के फसाने  गाते और लिखता रहूँगा  चेहरों का बदलना  और वादों की औपचारिकता निशाँ में बाक़ी भी न रहे तो क्या  गुज़रे वक़्त की नांदानियां  गाते और लिखता रहूँगा  दूर कही बादलों से आस की हर किरण छुप भी जाय  संकटों की लहरें आ भी जाय तो क्या  गुज़रे पहलुओं के अफ़साने  गाते और लिखता रहूँगा 

मुराद

यूँ तो बिछड़ने वाले  कम ही मिल पाते हैं  फिर भी उम्मीदों के पंख अपनी उड़ान भर ही जाते हैं यूँ तो गुमशुम की हुई बातें कोई जान नही पाता फिर भी जाने कैसे लोग कानाफूसी शुरु कर जाते हैं यूँ तो मुरादों के ताले  अक्सर खुल नही पाते  फिर भी इसी आस में कोशिश जारी रह जाती है यूँ तो दूरियों के इम्तिहान में गिने चुने ही पास होते  है फिर भी एकाकी हुऐ जीवन मे यादों के ठूँठ खड़े रह जाते हैं 

अक्सर

जब मन से आवाज़ गयी पहुँची ज़रूर है उस ओर  जानता हूँ अक्सर  दरवाज़े बन्द ही रहे वो सोच स्नेह की  मरती नही असर जरुर करती है  जानता हूँ अक्सर  एकतरफ़ा ही रही है वो  अपनो में लोग सब आते कहाँ  ख़्वाब जरुर आते हैं  जानता हूँ अक्सर  मक़ाम तक ले नही जाते है वो  जीतने नही हारने की ज़िद यहाँ  फिर भी अहसास आ ही जाते हैं जानता हूँ अक्सर  अलग ज़मीं के बाशिन्दें है वो 

तुम याद आये

यूँ जब पहाड भी विरान लगें जब फूल मुस्कुराते न लगें मिट्टी की सोंधी महक ग़ायब हो समझा कि तुम याद आये  घर से निकले हों शुकुं पाने को हँसते हों जब ग़म छुपाने को  भागती सी हर आशा लगे  समझा कि तुम याद आये  घण्टों किताब का बहाना लिये पढ़ने कि ज़िद मे खुद को भूलते हुए  जब पुरुस्वार्थ पर संकोच भारी लगे समझा कि तुम याद आये 

जो गुम से थे

सादगी यूँ साधती रही वो नज़र यूँ तांकती रही  कदम काँपते रहे जिनके  भागे जब तो ओझल हो गये  महफ़िलें जो सजती रही  उनके ज़िक्रो के पूरी न हुई  होंठ जिनके सीले ही रहे हमेशा बिन बोले हर बात मन पर लगी  जिनसे कभी कोई पहल न हुई हरवक्त जो गुमशुम ही दिखे  उनके ‘कुछ भी’ कहने वाली हर बात मन मे घर कर गयी जो यूँ तो दूर दूर बैठे रहे  गुज़रे तो तेज़ी से निकल गये अनभिज्ञ रहे ‘वो जानते सब थे’ कि ‘मन के’ मन पर क्या गुज़री है