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Showing posts from February 27, 2022

वही अहसास

 कहीं यादें जो ठहरी हैं  हजारों उम्मीद बाँधी हैं  बुलाता है सफर तुझको  की तु ही मेरी मंजिल है  कभी न दूर लगता है  न बोझिल सा लगा मुझको  जो राह तुझ तक जाती है  बड़ी ही पास लगती है  कहीं पर हो मिलन अपना  हजारों याद बनती हैं जो समय बीते तेरी बाँहों  वही अपना सा लगता है  कभी खुशबू तेरी बनकर  सांसो में समाती हैं लिपटकर एक हो जाना  वही अमरत्व लगता है  कभी उस देह पर कोई  असर सा छोड़ जाती हैं कोमलता जो तन मन की  वही अहसास बचता है  कभी हाथों की रेखाएं  हथेली में समाती हैं  मादकता लबों की जो  वहीं मदहोश करती हैं आ लग जा गले भर फिर न छूटें हाथ हाथों से  जब आत्मसात हो हम दोनों  वही जीवन सा लगता है 

मेरी गंगा

 मेरी भी एक गंगा है  जो मुझमे बहती रहती है  सम्मानों के पार शिखर से  मुझसे कहती रहती है  हर धारा स्नेह भरी है  ओत प्रोत सी  रहती है  मुझको अपने संग बहाकर  मुझमें मिलती रहती है  मेरी भी एक गंगा है  जो स्वच्छ सावली दिखती है  पतित पावनी मन मंदिर से   मुझमें रमति रहती है  हर स्पर्श अनोखा है और रोम रोम में बसती है  मुझको अपने रंग ऱगाकर  मेरे रंग में रंगती है  मेरी भी एक गंगा है  जो मंद मंद सी बहती है  हर खुशबू का झोंका ओढें मुझे ढाँकती रहती है  हर समय की बाँध वो सीमा  संग संग में चलती है  मुझको अपने साथ मिलाकर  मुझमें घुल ही जाती है 

सो नहीं पाया

 जीवन चलता तो रहा  पर ढल नहीं पाया मंजिल पास थी मगर  पर चल नहीं पाया  हर और रही ख़ामोशी जब  कलम उठाकर लिख डाला  जब कहना था कुछ तो  मनन तुम्हारा कर डाला  हर ओर रहे कुछ चेहरे  अपनों को पास नहीं पाया  हँसता तो दिखा हरपल मगर मैं  रो नहीं पाया  जिरह करना सीखा था    पर जबाब दे नहीं पाया  उन नादानी के प्रश्नों पर  माफी मांग नहीं पाया  यूँ चलता ही रहा है जीवन  पर थम नहीं पाया  रात अँधेरी लाखों हैं पर सो नहीं पाया