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Showing posts from April 24, 2022

कुछ साल

 दिनों दिनों से मन में रहती  बस तेरी खुमारी है  कुछ यादों में तु रहता है  कुछ मेरी तन्हाई है  समय क्षणिक बचा रहा था  फिर तु बरखा में भीगा है  कुछ पास रही वो खुशबू तेरी  कुछ तूने गले लगाया है  सालों साल तका है चंदा  फिर तु रोशन उजाला है  कुछ शामों की मंदम लौ है  कुछ तूने रूप निखारा है  कड़की बिजली झंझावात की   फिर तूने सबकुछ संभाला है  कुछ तेरी अपनी जिम्मेदारी  कुछ मेरा हक़ जाताना है  समय डोर पर बंधे हुए हम  जीवन रस्सा- कस्सी  है  कुछ तेरा है पूर्ण समर्पण  कुछ मेरा अधूरा रिश्ता है  आ ! बसा मनों में निश्चय हो  कुछ साल सुहाना जीवन हो  कुछ तु मुझमे खोया हो  और कुछ में तुझमे खोया हूँ 

एक जहां

उम्मीदों का एक जहां है पास मेरे बहती एक गंगा रमती है साथ मेरे लाखों कंकर पत्थर आये अवरोधों के आगोश लगाकर अमर कर गयी गीत मेरे उम्मीदों की आस नही थी पास मेरे जलधारा कोई नहीं समान्तर थी साथ मेरे लाखों पतझङ खुश्क हुए आशाओं के बसन्त सजाकर कोपल दे गयी ठूंठ मेरे उम्मीदों की साख कहां थी पास मेरे झूले मन के खाली झूले थे साथ मेरे  लाखों बार टूटे हिंङोले विश्वासों के  गले लागाकर घूम गयी एक शाम मेरे  उम्मीदो की कलम कहानी पास मेरे दूर सही एक रोशनी चलती साथ मेरे  लाखों बार अन्धेरा छाया सब दिशाओं से वो दीप पूंज सा अखण्ङ जला है ताप मेरे 

आत्मा का बंधन

 धुनि रमाये इंतजार की  उमड़ती बरखा साथ लिए  आत्मा का बंधन कर बैठा  जग के सब संताप लिए  एक परीक्षा खुद में देता  प्रश्न समान्तर मन में लिए  मांग संदूरी रची है जिसकी  उसके हर अहसान लिए  टुकड़े टुकड़े जीता जीवन  निभती कोई साँस लिए  हाथ पकड़ जो साथ चले हैं  उनसे ही हर आस लिए  छोर नहीं इस डोर का कोई  फिर भी सपने साथ लिए  जाने कब तक साँस चले  कब रिश्ते सब गुमनाम लिए