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उन यादों से

अब भी घर के किसी कोने में  मिल ही जाता है वो बचपन  लुढ़क आते हैं जब वो कंच्चे  छिपाये थे जो मुद्दत से  अब भी किताबो के पन्नों में  मिल ही जाते हैं वो जज्बात  दिखते हैं जब वो सूखे फूल  संजोये थे कुछ यादों से  अब भी राहों के मोड़ों पर  मुड़ती दिखती हैं वो नजर   बढ़ते लगते हैं वो कदम  ठिठकते थे कुछ कहने से  अब भी हैं सब कुछ यादों में  बातें कल की सी लगती हैं  गुनगुनाते हैं कानो में  स्फूर्त जीवन को करने को  खोया तो लगता है सबकुछ  पाने की उम्मीद नहीं  बिखर जाते हैं लब अब भी लेकिन  जीवन की उन यादों से