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Showing posts from March 15, 2020

सदियां हो गयी

वो दरवाजा जहाँ ठिठक जाता था उस एक उठती नज़र के लिए लगा की सदियां हो गयी और वो किताबें इतिहास हो गयी वो रेलिंग के सहारे छुपने की कोशिशें उस गुस्से को दबाने के लिए लगा की सदियां हो गयी और वो किस्से कहानियां हो गयी वो बातें जिनमें तर्क जी कमियां उस चेहरे की भाव को जानने के लिए लगा की सदियां हो गयी वो आदतें भावनाओं में तब्दील हो गयी 

दूर थे

कुछ ख्वाइशों का खेल था कुछ तक़दीर की बानगी कुछ पास आये दूर होकर दूर थे जब पास थे कुछ तेरे लोगों की साजिशें कुछ उपजाए थे बहम कुछ विश्वासों का जोर था दूर थे भूले नहीं कुछ मनों को जोड़ता कुछ  सीमाएं टूटती रही कुछ कदमो का तेज चलना दूर थे भूले नहीं 

संगम

तेरे अनजान अपनेपन में सम्वेदनाओं की कमी न थी  यूँ तो संवाद सीमित रहा  यूँ तो रिश्तों मे बँधे नही  अनगिनत उलझनें हों सही सोच तुझ तक जाती रही  यूं तो कभी विचार शून्य रहा यूँ तो कभी वो बूँद गिरी नही  देखा है कुछ सूखे संगमों को हम  बहती दो नदीयाँ ही सही यूं तो कभी अचानक उमड़ती रही  यूँ कभी चुपचाप शान्त ठहरी रही 

हम भी हैं तुम भी हो

काग़ज़ के तहख़ानों से कुछ याद समेटें निकली हैं  पीपल के सूखे पत्ते और  कुछ सकुचाई कोंपल हैं  सूखे ख़्वाबों में भी सुन्दर कुछ गीतों की खुशुबू हैं  हम भी हैं और तुम भी हैं साथ वो ज़िन्दा यादें हैं  यादों की उस पोटली में अनगिनत कुछ कहानियाँ हैं शुरु हुई कुछ ख़त्म नही हैं कुछ दबीं जबां ने कही नही हैं  कहीं थमीं हैं हाथ अंगुलियाँ  कहीं अलसाये होंठ थर्राते हैं  हम भी हैं और तुम भी हैं  साथ वो यादें ज़िन्दा हैं