Posts

Showing posts from October 15, 2023

संगम

मैं संगम पर तुझसे मिलकर तुझमें समाना चाहता हूँ खोकर सब अंहकार मैं अपने तुझको, गंगा बनाना चाहता हूँ तु जीवन दायनी सपन सजोये अंजुरी जल भर तर्पण कर दे मोक्ष मिले सब तुझमें समाकर तुझको मणिकर्णिका बनाना चाहता हूँ मैं समर्पण पर जीवन देकर  सब साथ निभाना चाहता हूँ तुझमें रहकर तेरा होकर  तुझको अपना ईष्ट बनाना चाहता हूँ तु सोख हिमालय सा अब चमके पाषाण अन्दर साथ निभाऊँ पहचान मिले सब साथ तुम्हारे तुझको माँ सा चाहना चाहता हूँ मै हूँ  तेरा तुझे समर्पित तुझको गंगा बनाना चाहता हूँ

मिट्टी सा

मैं मिट्टी सा बिछ जाऊँगा तु  फूल क्याँरियां खिल जाना मैं पात अरूई फैलूँगा बूँदे मोती तुम बन जाना मैं सागर सा बिन सीमा के  तु घर की चौखट बन जाना बाँह फैलाकर जब मैं पुकारूँ  तु वही समर्पण कर जाना रातों के सुनसान पहर का मौन गीत बन गुनगुना जाना मेरी खिसकती लगी जमीं पर  तु पक्की नीव लगा जाना