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Showing posts from March 10, 2019

तेरी ख़ामोश नाराजगी

तुझे खोने का ग़म तो है पर ख़ुश हूँ कि सिद्धान्तों से समझौता न किया जानता हूँ कि  मेरी बोलती शिकायतों से ज़्यादा  तेरी  ख़ामोश नज़रों  का असर हैं  यकिं फिर भी है  कि मन के किसी गर्त मे  स्नेह का वो बीज अभी मरा नहीं होगा .....

सब बदल गया

तु तो बदल ही गया है मै भी उसी राह पर हूँ  ये इस रिश्ते की मृत्युशैय्या है तेरा तेरे दोस्तों का अभिमान रहा  मैं स्वाभिमान के लिए लड़ा  भीड़ मे तु भी होगा मै भी हूँगा  तेरे अपनेपन और मेरे स्नेह की कमी होगी  मुलमुल तेरी हँसी शायद फिर भी हो लोगों के लिये मेरे लिए तेरी कमी पहले भी थी कल भी होगी हाँ तेरे लिए इसका अस्तित्व न था न है मेरे लिए अपनो मे तेरी कभी हमेशा होगी.... .......,,,, चल फिर अजनबी हो जाय तु अपने दोस्त मे ख़ुश रह मै करम को फिर पूजता जाऊँ  कोई भेजेगा फिर मित्रता की वो शौकात काश कि ये हो अबके तुझे याद रहे और मै भुल जाऊँ 

शामिल हूँ

इस खामोश  और अनिश्चित जीवन मै  सांसो की उहापोह मै बंधा हैं मन  जाता हैं कभी आसमान  तक तो कभी जमीं -दौ  बस शुकुन हैं की दौड़ मै आज भी शामिल हूँ  उस दिन से निराशा और उदासी ने घेरा हैं मन को  आशाओं का इंद्रधनुष धुंधला हुआ जाता हैं  जानता हूँ  दो छोर हैं हम, आसमां और जमीं  बस यहॉ शुक्र हैं कि जिजीविषा कम नहीं हुई  आज भी हुनर हैं रेत मै सरपट दौड़ने का  आज भी बचपन कि अवलता को भूले नहीं  फिर सब रास्ते तो जाने पहचाने हैं  तेरे साथ की कमी हो भी, तो भी..... हारूंगा नहीं ........

तू परेशान न होना

अभी तो तुफानो के जोर चलेंगे   बादल संकटो के मंडराएंगे  हर अंगुली भी उठ सकती हैं तेरी तरफ  तेरे दोस्तों ने बोये हैं शंकाओ के बीज  झूट  की परत शायद न हटे सच्चाई से भी शायद काम न चले  हर कोई कुछ सवाल भी करेगा  ये जाल बुना हैं तेरे अपनों ने ... मेरा रिश्ता स्नेह का हैं व्यापार का नहीं  ये तूफान मेरे स्नेह को झुका न पाएंगे कभी  बादल दुबिधा के छट ही जायेंगे एक दिन  बस तू परेशान न हो जाना  दूरियां तेरे दोस्तों से हैं  हम दोनों के मनो की नहीं  बंधन ये सम्मान का हैं जिद तुझे  पाने की  नहीं  मै  दौड़ा आवूंगा तुझ तक आज भी  बस तू परेशान न हो जाना .......

सपने

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कस्तूरी सी ढूंढ मचाकर तलाश में फिरते जाते है फिर भी सपने लाक्ष्यागृह से कब आग की भेंट चढ़ जाते हैं.. डरता नहीं हूँ अब भी उन्हें देखने मै आखिर तेरे से जोड़े रहते हैं आज भी तेरे- मेरे को एक गांठ मै बंधे रहते हैं सच ये भी हैं कि जीवन  स्नेह से भर देते हैं यही सपने तो उम्मीद जागते हैं यही सपने तो आस थमाते हैं यही सपने ही तो तुझ ले जाते हैं फिर इन्हे देखने से डरना क्या???

कल

मै आज को ख़ुश देखने की ख़ातिर  कल को भूलना सा चाहता हूँ तु ही है जो कल की ख़ातिर आज भी जोर-अजमाईश मै है कभी अकेले मै सोचना .... ये मुमकिन है कि दोस्त! तेरे पास  आने वाले कल मे  कुछ ख़ाली बीते कल मिलेगें कड़वाहट लिये मेरी कुछ यादे भी और मेरे पास तेरे यादों के कुछ गम्भीर मगर हँसीं कल बचेंगे ........

छोटा सा स्नेह

एक छोटा सा स्नेह सा था दोनों की नज़रों मे एक सम्मान भी था  तेरे क़दमों का लड़खड़ाना  तेरे होंठों का मुस्कुराहट लिये फैल जाना एक छोटा सा स्नेह ही तो था तेरा मानना और मेरा तुझे अपना समझना वो यूँ मिलते ही नज़र झुकाना और सुबह सुबह क़रीब से गुज़र जाना  एक छोटा सा स्नेह ही तो था वो तेरा मिठाई भेजना और मेरा तुझसे पूछना न जाने क्यों तु छुपा और  मै जता ना पाया तु मेरे लिये जो सोच गया मै वो कर नहीं पाया ये छोटा सा स्नेह ही तो था   हाँ! तेरे दोस्तों की तादाद के सामने  जो तुझे घेरे रहे और मुझसे खेलते रहे  इस स्नेह, तेरे अभिमान और मेरे सम्मान पर जो बहुत भारी रहा 

दूरियाँ

न तुझे देखना मेरा मक़सद  न तुझे चाहना  सनद रहे कि मेरी दूरियाँ  अपनापन कभी कम नहीं करती ये इन्तहां मेरे आदर्शो का है  ये जज़्बातों का नहीं  ये सम्मान का रिश्ता है  फिर मन मे जो बसा हो उसके लिए मन्दिर जाया नहीं जाता दोस्त!

ये बताना

तेरे ही लिए तो यहाँ सम्मानों के शिखर थे बुग्यालों के मखमली घासों के ग़लीचे थे कभी मन करे तो ये जरूर बताना क्या था मुझमे जो इतना न पसंद था? तू ही तो यहाँ मन के सबसे करीब था नज़रों मै था और अपनों मै सा था कभी पूछकर अपने मन को ये जरूर बताना की वो विश्वासों की डोर कमजोर कब हुई थी? माना कि मेरे स्वभाव या इन कविताओं का दोष होगा या बार बार के उन  फूलों और पहाड़ो के चलचित्रो का, कभी मन करे तो अभिमानी  काटों के तारों को लांघकर ये बताना कि तेरे सम्मान की सरहदों को मैंने लांघा कब था? 

लाल बाग के राजा

वो लाल बाग़ के राजा वाला मै अक्खण औगण बाबा का वो  चौपाटी की फैली शाम मै वृंदावन की कुंज गली  वो सरल सरस गंगा जी है मै तेज़ तर्राती ‘मन्दाकिनी’......

तुझे मानना भी क्या

उम्र के इस पड़ाव पर एक ठहराव बनकर आया तू साथ था तू ये बहम था मेरा फिर भी हर वक़्त साथ सा लगा तू तुझे पाना खोना भी क्या और तुझे मानना भी क्या जो तु मन मै रहता है हरदम तो तुझे जीतना और दिखाना भी क्या यकीं है कि तुझे अहसास तो होगा फिर दुःख क्यों हो कि तु दूर खड़ा है बस अफ़सोस तेरी मुस्कराहट को खोने का है .......................

वीरान

वीरान मनो  की ख़ामोश अनुभूतियाँ  यूँ ही अविचल नहीं होती तेरा स्नेह रहे न रहे मेरे सम्मानों मे कमी नहीं  होगी......

हँसी

वो जो हँसी तु कभी  क़भार रोक नहीं पाता वो सूनापन जो  छुपायी है एक राज। मान ले मुस्कुराहट ही  तेरी पहचान है और तु खाम-ओ-खां  परेशान सा है यही तो अपना अपनापन है .....

ख़ामोशी

जिसे सींचा नहीं मैंने, वो कोपल खिल गयी है अब ये तल्खी चाहकर भी अब, बड़ा दूरी नहीं सकती  तुझे देखे बिना तकना, तुझे सोचे बिना पाना  विश्वासों से बड़ी कोई, इबादत हो नहीं सकती ...... जो जीवन मै नहीं माँगा, वो खुद ही पा रहा हूँ मै  सम्मानों की सरहद अब, बड़ा दूरी नहीं सकती  तेरा माने बिना होना, तेरा नज़रें झुका जाना  मनो के तार से बढ़कर कोई इच्छा नहीं होती ....... जो यूँ खामोश रहता है, वो अक्क्सर शोर करता है  तेरी संजीद नजरे भी ये छुपा अहसास नहीं सकती  समझना है समझ लेना, ना समझो तो भी चलता है  इरादों से बड़ी कोई, साजिश हो नहीं सकती ........

विश्वास

सूरज  है साक्षी  जिसका  ऋतुओं मै जो पला बड़ा है  ऊँचे पहाड़ो सा धैर्य लिए  वो विश्वास कही कम न हो जाये .. सींचा है जिसको एक बीज सा  पाला जिसको  दाना चुगकर  अब पीपल सा रूप लिए  वो विश्वास कही कम ना हो जाये ... झरने जिसकी छबि लिए सागर सा विस्तृत है वो  नदियों सा प्रवाहित रहा जो  वो विश्वास कही कम ना हो जाये..... तरुबेला पर कलियों जैसा खिला  साखों पर बेलों सा चिपटा  तुझको मुझको बांधे है जो  वो विश्वास कही कम ना हो जाये ......

तेरी मेरी

कुछ तेरी होगी  कुछ मेरी होंगी। कुछ फँसाने होगें कुछ शिकायतें होगीं। कही घुटन कही स्मृतियाँ  कुछ क़िस्से कहानियाँ होंगी। छिपायेगा कब तक दोस्त! रिश्ते कभी केवल  स्नेह और सम्मान के भी होते है.....