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Showing posts from August 2, 2020

तु मै

तु ब्रह्मकमल बुग्यालों का  मैं शैवाल समुन्दरी चट्टानों का  तु श्रद्धा शबूरी तन मन की  मैं राख रचाये औगण हूँ

बातें खुद से

बातें खुद से पूछ रही थी  चुप रहने से क्या जाता है  कहने का तब अर्थ नहीं है  भावों में जब वो रहता है  आँखें मंद हो पूछ रही थी  यादों से कब वो जाता है  सोने का तब अर्थ नहीं है  सपनों में वो जब आता है  आवाज़ कहीं से पूछ रही थी  लिखने से कब क्या होता है  शिलालेख का अर्थ नहीं है  मिटकर भी वो असर रहा है  मन ने मन से बातें की जब  तुझ तक कहने से क्या होता है  शब्दों तब अर्थ नहीं है  मौन सदा से प्रखर रहा है