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Showing posts from June 13, 2021

तुझसे जुड़कर

 खेतों की मेढ़ों पर फूलों की एक क्यारी सी  घर के नारंगी पेड़ों पर कोई छोटी चिड़िया सी  बादल को छूकर देखा है पहाड़ों की उचीं चोटी से मैंने रंग हज़ारों देखे हैं गोद में बैठे धरती के  बरसाती मौसम में बार बार के इंद्रधनुष सी  दूर उफनती किसी नदी के सुर समवेतों  की  फसल लहरते देखा है बासन्ती हवाओं में  मैंने संग हज़ारों देखे हैं साथ में चलते 'नंदा' के  सब लौट के आया है बचपन की मीठी यादों सी  जौ गेहूं की अंकुर हो या धान उगाती चावल सी  आशाओं को छुपे देखा है पीढ़ियों के 'क्वाठारों' में  मैंने तुझसे जुड़कर पाए सपने अपने बचपन के। 

तेरा दिन

 तेरे दिन पर मेरे मन का कुछ चुप रहना ही अच्छा है  खोना पाना जीवन तुझसे मौन में जीना अच्छा है  संबंधों के तार जुड़े जब  सुधि को तेरी पाया है  मैंने यूँही  तब से जीवन  तेरे साथ बिताया है  तेरे दिन पर मेरे मन का कुछ खो जाना अच्छा है  जीवन का जो सार रहा है उससे जानना अच्छा है  बंधन में जब रहा है ये मन मनन तेरा ही आया ही  मैंने यूँही  तब से जीवन  तेरे साथ बिताया है  तेरे दिन का भरम रहा जो सच पाना ही अच्छा है  लुका छुपी का ताना बाना खोल आसमा अच्छा है  तू अब है जब नहीं भी था तो हर पल साथ मनाया है  मैंने यूँही  तब से जीवन  तेरे साथ बिताया है  तेरे दिन का अहसास रहा वो जीवन जीना अपना है  हो तू दूर कहीं भी लेकिन पास रखना तुझको अच्छा है  कविता की इन क्यारियों में फूल तेरा ही उगाया है  मैंने यूँही  तब से जीवन  तेरे साथ बिताया है 

जीवन दर्शन

 जिस पर कोई हक़ नहीं था वो अब हक़ सा देता है  इसी रुप में, इस बन्धन में, पूरा जीवनदान मिलेगा। अपनों मै शामिल सा था जो अब अपना सा कहता है  इसी राह में इसी जन्म में एक छोटा सा समर्पण होगा ।  जो दिन मेरा कभी नहीं था वो मेरा सा लगता है  इसी रूह में इस तन मन पर पूरा मन का तर्पण होगा  सम्बन्धों का साथ लिखेंगे जीवन की परिपाटी होगी  रजकण में जीवन  की आशा पूरा जीवन दर्शन होगा 

शामिल रहा

  यूँ तो कब मैं तेरे सुख दुःख में शामिल रहा  करने लगा जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  छुपी हुई कुछ बातें कुछ यादों का इतिहास लगा  पास जो आया अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  यूँ तो कब मैं तेरे उन अपनों में शामिल रहा  करने लगा जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  बदमाशियां बातों की  कुछ गहरा अपना साथ लगा  बाँट गया जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  यूँ तो कब मैं तेरी रातों  में शामिल रहा करने लगा जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  सपनो की कुछ बातें कुछ भुला बिसरा साथ लगा कहता है जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  यूँ तो कब में तेरी राहों में शामिल रहा  करने लगा जो अब तु यही सोच के मन खुश रहने लगा  पाने को एक दुनिया खोने को कारवां रहा  चलने लगातु साथ मेरे यही सोच के मन खुश रहने लगा

एक तस्वीर

 इस मन के आईने में जो मुरलीधर ब्रजवाला था  खोने को ब्रजबाला थी तो पाने को ये जीवन था  कह कब पाए हैं उतना जितना तस्वीरों ने बोल दिया  जन्मों से सोचा था जिसको एक तस्वीर ने मिला दिया   इस मन का जो वहम रहा वो नटखट बंसी वाला था  खोने को एक बृजभूमि थी पाने को दर्द सुहाना था  कब लिख पाए जो लिखना था मौन परस्पर बोल गया  बरसों से जो सोच गयी थी एक तस्वीर ने मिला दिया  इस मन का जो आराध्य रहा वो रास रचाता कान्हा था  खोने को सब बाल सखा थे पाने को एक रजकण था  कब सुन पाए जो सुनना था वो बिन बोले ही बोल गया  एक रिश्ता जो धूमिल सा था उस तस्वीर ने मिला दिया 

साथ निभाता जाऊँगा

 दर्द सहा दूरी का मैंने तु अपनों से दूर न हो जाना  उनकी खातिर इन दीपों को चाहे तो ठुकरा जाना  मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा  वो  देवतुल्य जो  मन में है तु पूजा  ही जायेगा  दर्द सहा ख़ामोशी का तु अपनों से नाराज़ न हो जाना  उनकी खातिर चाहे तो ये ढोल ख़ुशी चुप कर जाना  मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा तीन शब्द जो मन मै हैं वो समर्पण साथ ही जायेगा   दर्द सहा तेरे खोने का तु अपनों को मत खो जाना  उनकी खातिर चाहे तो एक बार शूल फिर दे जाना मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा तु कविता बन जिन्दा है ये दर्द साथ ही जायेगा 

चंद दिनों में

 चंद दिनों में पाया जीवन कुछ थोड़ा सा बाकी है  जाने कुछ तो बात वो होगी तु गुमशुम हो जाता है  खोना पाना बाद लिखूंगा घुटना हंसना सब तय है  बाँट भी लेना साथ वो सारा ये जीवन सांसे क्या कम हैं चंद दिनों की प्रीत अनुत्तरित जिज्ञासा अभी बाकी है  जाने कुछ तो लोग भी होंगे जिनकी गुरुता ऊँची  है  राह अकेली चुनी जो है मंजिल इसकी कोई नहीं है  इन राहों पर चलकर थोड़ा मर्म समझना क्या कम है  चंद दिनों का साथ जीया है उसे निभाना बाकि है  जाने कुछ तो मन ने सुना है जिसे रोक सा देता है  कहने को एक उम्र पड़ी है सुनना तुझसे और भी है  इन रातों में जगकर थोड़ा बुनियाद बनाना क्या कम है 

अब भी तो है

  दर्द की एक कहानी उसकी भी है  आंसुओ को छुपाती खुमारी भी है  पूछता हूँ कभी कुछ बताता नहीं  उंगुलियों को दबाता वो अब भी तो है ।   प्यास की एक कहानी उसकी भी है  संधियों की कुछ शर्तें उसकी भी हैं  वो निभाता रहा त्याग स्नेह सब  मन में आरज़ू दबी वो अब भी तो है  ।  फर्ज की एक कहानी उसकी भी है  कर्म के कुछ बंधन उसके भी हैं  मिलना मिलाना सभी रोज़ होता नहीं  ऐतबार - ए- सरहद अब भी तो है ।   अधूरी रही एक कहानी उसकी भी है  प्रीत को ढूँढ़ती तीस उसकी भी है  इन सांसो की खुशबू मिली है मगर  तुझमे बाकि का खोना अब भी तो है  तुझसे कहना बहुत कुछ अब भी तो है  तुझसे सुनना बहुत कुछ अब भी तो है  कह सकेंगे कभी मन का विश्वाश  है  इस कहानी की मंजिल अब  भी तो है