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Showing posts from July 12, 2020

गुमनाम ही रह जाते हैं

लिखा तो सब कुछ था  कागजों में न नज़र आया  मुक्कदर में कुछ रेखाएं  खोने के लिए भी होती है  पढ़ा तो सब कुछ था  परीक्षा में न काम आया  किताबो  के कुछ पन्ने खाली भी रह जाते हैं माना तो सब कुछ था  अपनों में न गिना पाया  मनों के कुछ रिश्ते  गुमनाम ही रह जाते हैं 

तू लगे

बढ़कर रुकना है सबको  झुक जाना है एक दिन  जो कभी भी टूट जाऊ  बस जोड़ता पूल तू लगे  टूटकर गिरना है सबको  बिखर जाना है एक दिन  जो कहीं भी मिलूं धरा पर  बस साथ आता तू लगे  छोड़कर जाना है सबको  जुदा हो जाना है एक दिन  जो कभी भी चलूँ जहां से  बस याद तू आते लगे 

स्नेह की पहचान

कोई ख्वाब जब अधूरा लगे  कोई राह जब कठिन दिखे  मंजिलों के शिखर से परे  मेरी खुशियों का अम्बार है  कोई रास्ता जब लम्बा लगे  कोई वन जब निर्जन लगे  शून्यता के शून्य से परे  मेरी कोशिशों की उड़ान है  कोई शब्द जब सुनाई न दे  कोई मंजिल अदृश्य लगे  पाने खोने से दूर कहीं  मेरे स्नेह की पहचान है 

ख्यालों के महल

न इठला रौशनी की  गली  मैं अपना चाँद छोड़ आया हूँ  आबाद तेरे शहर को करने  मैं अपना गांव छोड़ आया हूँ  न गुमां चंद रोज की धमक पर  मैं अखंड दीया छोड़ आया हूँ  तू चले जाने को धौंस समझता है  मैं बहती नदी छोड़ आया हूँ  न बना ख्यालों के महल  मैं बड़ी 'तिवारियाँ' छोड़ आया हूँ  तेरी ये बालकनियां खरीद न पाएंगी !  मैं पूरे पहाड़ छोड़ आया हूँ