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Showing posts from February 20, 2022

गोदी सुला ले

 आज कुछ चिंता सी कुछ मन उदास है  आ गले लगा ले कुछ देर थाम लूँ सांसे   हारा नहीं थका नहीं बस चलता ही जाता हूँ  भर आगोश जरा सा आ पसार ले बाहें  निश्चय नहीं होता कुछ समय मांग बैठा है  बह जाएँ कुछ आंसू आ गोदी सुला ले  मन जाता है तुझ तक कह न पाए कुछ भी  आ कह दें सब कुछ मन की बस मौन रहे सब बातें 

बिन अहसास

 शायद वो अधूरा मेरे बिना उसके बिना मैं अधूरा हूँ  बिन दीपक जो जले है बाती बिन खुशबू का झोंका  हूँ  कोरे कागज़ खाली कलमें  लिखता कभी मिटाता हूँ  बिन प्रेषक के लिखी है पाती बिन पत्राचार का साथी हूँ  डोर कहीं एक छोर बंधी है  चलता  थमता रुकता हूँ  बिन पिपासा बढ़ता जाता  बिन मंजिल का राही हूँ संग संग कुछ दूर चले हैं  सपने अनगिनत सजता हूँ  बिन संगम के बही है नदिया  बिन छोर का सागर हूँ  कब रचता हूँ प्रेम तृषणगी कब गीत मिलन को गाता हूँ  बिना नाम कुछ रिश्ते होते  बिन अहसास का पत्थर हूँ 

असर

 जिस मोड़ पर खड़ा हूँ मैं  बेरुख हवाएं प्रीत की  तु जो होता नाराज़ तो  बात असर की कम ही थी  बातों का सूखा रूखापन  बेदर्द सदायें प्रीत की  तु जो होता बेतरतीब तो  बात असर की कम ही थी सबका गुस्सा मुझ पर जो   बेमन अदाएं प्रीत की  तु जो होता अजनबी तो  बात असर की कम ही थी स्नेह आंकलन कब है ये  कब  ये परीक्षा प्रीत की  तु न होता प्रेम पथिक तो  बात असर की कम ही थी पल पल कमता जायेगा जो जीत न होगी प्रीत की  तु मन के सबसे पास न होता तो  बात असर की कम ही थी

साथ

 तु जो साथ देता हर मोड़ पर  क्या था मुझमें पता नहीं  तूने दाम मेरा बढ़ा दिया  मैं सिफर ही था सदा यही   जो तूने जोड़ा है अपनों में  क्या मेरा बजूद पता नहीं  तूने हक़ मेरा दिला दिया  मैं खो गया था सदा यही   जो लिखी हैं तुमने ये इबारतें क्या मेरा नसीब पता नहीं  तेरे पास थे मेरे लाख से  मुझे तुझसा कोई मिला नहीं जो तुमने सजा दी है मांग में  क्या मेरा ये रंग पता नहीं  तूने सांसों को बढ़ा दिया  मैं छोड़ चूका था देह पहले कहीं  

मंजिल मिल जाती है

 जो राहें सुकूं तक जाएं अक्सर लम्बी होती हैं  इंतजार जब लम्बा हो  मंजिल मिल ही जाती है  अन्वेषण अनुसंधानों की  समय सारिणी लम्बी है  हों निरंतरता विश्वासों की  मंजिल मिल ही जाती है बट बृक्षों की ठंडी छाँव बरसों का प्रयास है  हो समर्पण रिश्तों में  मंजिल मिल ही जाती है कटते जलते जंगल की  परिस्थितिकी बनती है  समय मिले एक सोच को तो  मंजिल मिल ही जाती है

खिसकता पहाड़

खिसकता पहाड़ हूँ  कमता सा जंगल हूँ मैं  ख़त्म होते पन्नों पर  अधूरी सी कहानी हूँ  अँधेरा गहराता शून्य का  अर्श पर चाँद हैं  उम्मीदों के महल सारे  संभावना के पहाड़ हैं  झुरमुट में छाँव यादों की  सूखता 'पयार' हूँ  दावानल की लपटों में  खरहा की दौड़ हूँ  शिलालेख स्नेह का  तामपत्र हूँ अक़ीदा का  आशीषों के अशेष पर  मिटती भाग्य रेखा हूँ  एक तेरे भरोसे बैठा हूँ  थमता, बहता अटका हूँ  खिसकता पहाड़ हूँ  कमता सा जंगल हूँ मैं