Posts

Showing posts from June 6, 2021

तुझमे- मुझमे

 बहती नदिया कहानी वो तुझमे भी है  चहचहाती गोरैया वो तुझमे भी है  भीगती सी रही जो बरखा में कभी वो अल्हड जवानी तुझमे भी है  रास राधा कन्हैया वो तुझमे भी है  नटखट बछेरु सा  तुझमे भी है  दौड़ती सी रही एक अल्हड प्रीति  वो मीरा दीवानी तुझमे भी है बोलती गुनगुनाती तु  मुझमे भी है  घोलती प्रेमरस वो तु मुझमे भी है  प्रेरणा की कोई चांदनी रात सी  मुझको जगाती वो तु मुझमे भी है  प्रेम स्नेह आलिंगन तु मुझमे भी है  मन की हर एक तमन्ना तु मुझमे भी है  उस  समर्पण की एक बानगी सी कोई  तेरी सांसो की खुशबु मुझमे भी है ।  

एक दीप बन जलाता रहा

 जो सहज थे जो सरल हैं शुद्ध तन-मन-प्राण हैं  वो रहे शर्तो से बाहर मन के वो अभिमान हैं  वो हिमालय है मेरा जो वो ही गंगा तट रहा  हर समय की साख पर सांसो को वो थामे रखा।   जो पास हैं जो साथ हैं जो त्याग के प्रतिरूप हैं  वो रहे पाने से बाहर मन के तय सा मोक्ष हैं  वो ज्ञान का आलय है मेरा वो ही मन का दान है हर पहल की लौ  पे वो एक दीप बन जलाता रहा ।   जो मेरे गीतों में है कविता में है रस छंद सा  वो रहे शब्दों से बाहर मन के अंतिम मौन हैं  वो शिवालय है मेरा जो वो ही मन मूरत रहा  हर कदम के नाप पर दूरी को कम करता गया । 

जिद्द सच का साथ देने की है : देवस्थानम बोर्ड

  आजकल उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड फिर चर्चाओं में है । चर्चा का वर्तमान विषय मुख्य रूप से चारों धामों से  नामित सदस्यों को लेकर है।  सरकार या देवस्थानम बोर्ड ने किस प्रक्रिया के तहत इन सदस्यों का चुनाव किया है इसका भी कोई ज्यादा विवरण न सरकार दे पा रही है न देवस्थानम बोर्ड।  क्या ये चुने गए जनप्रतिनिधि सही में जन का प्रतिनिधित्व  करते हैं ये बड़ा सोचनीय विषय है।  सरकार और बोर्ड को इस पर अपना पक्ष आज नहीं तो कल रखना ही होगा।   आज धामों और जनता  के विरोध प्रदर्शन ये दिखाते हैं की सरकार में बैठे  बोर्ड के कुछ  हिमायती मंत्रियों  और नेताओं के अलावा ज्यादा लोग अभी तक के देवस्थानम बोर्ड के पक्ष में तो नहीं दिखते।  और देखा भी क्यों , अगर आप बोर्ड के अधिनियम को पूरा पढ़ेंगे तो आपको ये समझना मुश्किल है कि इन पदाधिकारियों , सदस्यों , कर्मचारियों , अध्यक्ष , दानदाताओ , गैर वंशानुगत , वंशानुगत पुजारियों , हक हकूक धारियों का चुनाव किस विधान से होग।  कौन उनका चुनाव करेगा ?  मतलब साफ़ है काका , मामा , बेटा , फूफा का लड़का , पार्टी का दलबदल कोई नेता , दर्जाधारी कोई चमचा ही बोर्ड के विभिन्न पदों पर

एक सांस है

 मन की इच्छाओं में जो लगे पर ये हैं  पार सीमाओं को लाँघ देते हैं वो  हर मान से भी तु बढ़कर के है  तुझसे रिश्ता भी तेरा ही सम्मान है  दो घडी की वो सांसे मिली जो कहीं  साथ तेरा समर्पण रहेगा सदा  हर ज्ञान से भी तु बढ़कर के है तुझको जीना भी तेरा ही अभिमान है  हाथ जो हाथ में रख दिया था कभी  वो बचन तो निभाने हैं जीवन सदा  हर संज्ञान से भी तु बढ़कर के है  तुझको महफ़ूज रखना भी एक आस है  जो समर्पण किया था खुद को कभी  वो रहेगा जीवन अंत तर्पण सदा  पाना खोना तो जीवन का दर्शन रहा  तुझको अपने मै रखना ही एक सांस है  

स्नेह समर्पित

लाल गुलाब एक माँ ने रोपा एक तेरी पोशाक लगी  यूँ कुछ करके मैंने तुझसे फिर रिश्ता सा बान्ध लिया  हो उगंली पकड़े तु सहमी या नज़रें फेर ले यूँ सबसे  आराध्य रहे जो देव तुम्हारे हक़ मैंने भी जता लिया लाल कमलदल होंठों पर गहरी वो मुस्कान दिखी  तु शादी के जोड़े मे भी अपनी सी कोई ख़ास लगी  ‘सिंह’ रहा है राजा कानन मोर पंख कान्हा का है  ‘नथुली’ पहन जो सज़ा रहा वो सौन्दर्य पहाडी है  बरसों बाद किसी ने फिर से उस जीवन को जोड़ा है कहीं नही थे आसपास पर स्नेह समर्पित सौंपा है  कविता को कोई छन्द मिला है बाहर रात सुहानी है तु भी है और मै भी हूँ इस जीवन की यही कहानी है । 

तुझमे मुझमे है बसा

 वो जो है रहा हर बात में  वो जो बांटता समय भी है  सुनता है हर सीला मगर कहता कभी कुछ भी नहीं  वोही सादगी पहचान  है  वो सरल स्वभाव मान है  वो लिखने नहीं देता मगर   पढ़ने की चाह है रही  वो जो है रहा हर चाह में  वो जो बाँटता हर राज भी  वो जो दिखने नहीं देता मगर  रखता है  हर सम्मान भी  वो जो मायने बदल गया  वो जो जीवन को राह दे गया  वो जो रहता है दूरी में मगर  सदा रहा मन के करीब भी ।   वोही आरजू है सांस की  वोही  आखिरी नजर रहे  वो जो तुझमे मुझमे है बसा  वो खलुस ही अमर रहे

वो एक रात

 वो एक रात जो कटी नहीं ये नहीं की तुझसे गिला रहा  कभी बोलता वो दर्द था कभी मायूस मन डरा रहा  तेरी खैरियत के  रूबरू ये मन दिशा भटक गया  कभी ख़्वाब सा सजा रहा कभी शिकायते करने लगा  तेरे अपनों की कुछ शिकायतें कभी  रूठना तेरा लगा  सच में मन कभी कभी उस 'अपने' तक लगा रहा  हर बात को समझा गया पर मन कभी लगा नहीं  कभी माँ का एक फर्ज सा कभी प्रेयसी का विवाद था  वो जो भाग्य मै लिखा न था ये तलाश रहगुजर की है  जनता ये मन भी है रहा है  अटूट ये  वास्ता 

हार कर हम तुम

 हम समय की धार पर चलते हैं बह जाते कहीं  न मिले हमको समुन्दर हम  बह रहे पर हैं सही  हर नदी जो बह चली मंजिल सदा पहुँची नहीं  सभ्यताएं जन्म लेकर खो गयीं उसमे कहीं  उस नदी की धार हो हम बह चले कुछ दूर तो  पास बैठे मीत कोई जग में जी लें स्वप्न को  हर पुल बंधा हो छोर दो कब हुआ जग मै सदा  जोड़ियां बनकर जुदा होती है जग मै वो यहीं  हम रहे दो छोर तब भी किदवंतियाँ जग में रहें हो अमर ये साथ कुछ तो कर ही जाना है अभी  हम समय की रेत पर कुछ लिख न पाएं गम नहीं  जो समय हम साथ हों वो जीत जाये हम यहीं  आ बढ़ा ले हाथ साथी कुछ दूर तू चल तो जरा  जीत लेंगे ये जमाना हार कर हम तुम यहीं

मौसम में रे मन !

 बारिश की कुछ बूँदें मद्धम  जीवन का सार सिखाती हैं  होले चल मौसम में रे मन ! राह अभी भी लम्बी है।  बिजली की वो तेज चमक  आवाज़ अभी भी डराती है  संभल जरा मौसम में रे मन ! मंजिल तेरी दूर बड़ी है।   भीग गया जो छोटा मन  संसार भिगोना बाकि है  चुपके चल मौसम में रे मन ! लाखों तुझ पर नज़र पड़ीं हैं  साथ हैं पर साथ कहाँ हैं  साथ चलना अभी बाकि है  धीरे संभल मौसम में रे मन ! राह तेरी जरूर लम्बी है।।