वो एक रात

 वो एक रात जो कटी नहीं ये नहीं की तुझसे गिला रहा 

कभी बोलता वो दर्द था कभी मायूस मन डरा रहा 


तेरी खैरियत के  रूबरू ये मन दिशा भटक गया 

कभी ख़्वाब सा सजा रहा कभी शिकायते करने लगा 


तेरे अपनों की कुछ शिकायतें कभी  रूठना तेरा लगा 

सच में मन कभी कभी उस 'अपने' तक लगा रहा 


हर बात को समझा गया पर मन कभी लगा नहीं 

कभी माँ का एक फर्ज सा कभी प्रेयसी का विवाद था 


वो जो भाग्य मै लिखा न था ये तलाश रहगुजर की है 

जनता ये मन भी है रहा है  अटूट ये  वास्ता 

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