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Showing posts from November 14, 2021

चिड़िया

 रात के इस सन्नाटे में  चिड़िया आयी है घर मेरे अभी  जाने क्या कहती है  कहीं कोई देव दूत तो नहीं !! याकि मिल आयी होगी तुझसे बताना होगा मुझे कुछ  तू कभी कहेगा नहीं  पर ये समझ गयी होगी   इसकी ची-ची समझ नहीं आयी  तुमने कोई बात कही तो नहीं  बहम है शायद  पर ये चिड़िया, सन्नाटा और काली रात  यथार्थ है  आस का बीज है  रिश्तों की सोच है  कल्पना की सच्चाई है  मनों के तार हैं  और जीवन का विस्तार है  तू ही बता चिड़िया  की सच क्या है ?

एकांत

 वो पल नहीं होता कभी  जब साथ तु रहता नहीं  एकांत का साथी है तु  अपूर्ण सा सपना कोई  जो चल पड़ा इस राह पर  अब कुछ मुड़ा जाता नहीं  एकांत का  अहसास तु  मंजिल वही जो मिली नहीं  मन की एक उधेड़वुन निष्कर्ष तक जाती नहीं  एकांत की गंगा है तु  वैराग सा है पथ कोई  मैं पा भी लूँ हर साथ को  लकीर वो हाथों नहीं  एकांत का चिंतन है तु  सांसों की आखिरी कड़ी  लाख हो मंजिल अधूरी  लाख सपने खाक हो  एक ख़ुशी पाने की है  एक ख़ुशी यादों में हो  

बेरुखी हरदम

 तुझे किस बात का डर है  प्रणय ये प्रेम था कब से  जो एक जिद में मैं बैठा हूँ  ये हर-ओ-जीत मेरी है  तुझे कब बंदिशें बाँधी कहाँ कब रोक पाया है  ये निर्णय भी मेरा ही था  ये सजा- ए-मौत  मेरी है  नहीं करना जो कुछ बातें  वो तेरा ही तो निर्णय है  मेरी हर बात है तुझसे  मेरे ख्वाबों की तु मंजिल है  रखना बेरुखी हरदम  ये तुझको ही मुबारक है  मेरी हर साँस की खुशियां  तेरे द्वारे ठहरती हैं अधूरे इस सफर पर हम  मेरी सम्पूर्णता तुझसे  तु लाखों की है एक दुनिया  मेरी दुनियां तो तुझतक है 

पत्थर राहों का

 कभी बाहें लगाता है  कभी बाहें छुड़ाता है  सवालों का हक़ जिसको  वही चुपचाप रहता है  कभी सबरंग चढ़ाता है  कभी बेरंग कर देता  अश्कों की है परिभाषा  वो ही जीवन बदलता है  जिसे मदमस्त बहना था  सिकुड़कर छोर बैठा है  कोमल मन सहृदय है  वो पत्थर सा बना रहता अल्हड था जवानी में  तपस्वी सा है बन बैठा  मन का एक निगहबाँ है  वो ही दूरी में रहता है  जिसे जाना है वो जाये  ठहरना है ठहर जाये  पत्थर उन ही राहों का  हजारों ठोकरें मेरी 

मेरा ही है

 वो हँसता है हँसाता है  कभी मुझको मनाता है  वो चाहत साथ की रखकर  अक्सर रूठ जाता है  वो गिनता है गिनाता है  अपनों में परायों में  कभी मन बीच रखता है  कभी पूरा भुलाता है  वो रोता है रुलाता है  कभी सब बाँट जाता है  मिलाकर साँस सांसों से  कभी सांसें छीन जाता है  वो मिलता है बुलाता है  कभी दूर भाग जाता है  बाँहों भर कभी मुझको  छिटककर हाथ जाता है  वो अपना मुझको मानता है  कभी पराया बना लेता है  कल्पना के समुन्दर में  तैराता है डुबोता है  वो मेरा है मेरा ही है  बताता नहीं जताता है  लाखों दायित्व हैं उसके  मुझे बस मन में रखता है 

वजूद लिखूंगा

 कभी कहीं रिश्तों की पहचान लिखूंगा  दबी हुई हथेली पर एक नाम लिखूंगा गुमशुम कहती आँखों का हिसाब लिखूंगा   सांसों के उत्तापों का प्रमाण लिखूंगा  बहकर थमते आँसूं का वजूद लिखूंगा  बहते उन अरमानों का ठहराव लिखूंगा  मन में प्रज्वलित लौं का प्रकाश लिखूंगा  अंजुरी भर संवादों का सारांश लिखूंगा  तुझमे खोती दुनिया का प्रतिक  लिखूंगा  जीते हारे या थके मन हर बात लिखूंगा  जीवन देती कविता का समवेत लिखूंगा  तेरी मेरी कहानी का एक सार लिखूंगा 

दीप

 जो देखा नहीं बरसों तक  वो चेहरा मन की मूरत है  मैं तल अँधेरा दीपक का   वो प्रकाश है ज्योति का  बरसों तड़फ रहा पतंगा  जल जाना है दीपक में  या थाल लिए आरती सजा दूँ  करके  अश्रु समर्पण मैं  अंधेरों से लड़ आया हूँ  राह दिखा वो राह चलाता या प्रकाश परावर्तित होकर  जगमग मेरी दुनिया करता  मिलन दीप की बाती का  पाणिग्रह के सिलवट्टे में  या समर्पित मन की आशाओं के  दीप बहे गंगा तट जो