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Showing posts from September 20, 2020

शिवजटा

अस्तित्व छोटा संकरे रास्तों पर  मैं मचलती दौड़ती एक योवन हूँ   मिलना नही उस बडे समुन्दर  मै जलतन्त्र की छोटी नदी हूँ  फैले से उन्मुक्त आकाश में  विरह की बाँसुरी की धुन हूँ  सिमटा हुआ सा प्रवाह है  मैं पहाड की छोटी नदी हूँ तुम समुन्दर से भी गहरे लाख दम्भ मन में दबायें  खुद की पहचान खोकर  मैं शिवजटा की छोटी नदी हूँ 

मौन आभास

उन आख़री शब्दों में भी ढूँढता स्नेह हूँ  आख़री कुछ पंक्तियों में समग्र का शेष हूँ  बह चला हो दूर जो ताँकता अब उसको हूँ  मैं नदी में टूटता घुलता कोई अवसाद हूँ  अग्निपथ पर रश्मिरथ सा चलता हुआ सवार हूँ  हर कलह की देह पर असीम शान्ती का संवाद हूँ  उड चला जो अंबुधि में वो लौटता एक विहग हूँ  मैं खुद की तलाश में खुद को ढूँढता एक मार्ग हूँ  अनकही कहानी के उपसर्ग का एक भाव हूँ  कविता के मूल का गूढ़ सा अहसास हूँ  कह दिया आवेश में उस भावना का मूर्त हूँ  मै मौन रहकर मौन के विश्वास का आभास हूँ