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Showing posts from March 10, 2024

महात्म

जिस मन में कुछ अंकुर फूटे जिन बीजों में जीवन है वो आस पालते रहे सदा हर बर्फिले तूफानों में संयम का साथ कहाँ  छूटा है कहाँ बोझ मन पडा रहा जब जब रूठा जीवन मुझसे बाबा तेरा साथ रहा कुछ राहें चलनी बाकि हैं कुछ सफर अभी अनजाने हैं कुछ गीत अधूरे छूटे हैं  कुछ जोर-ओ-अजमाईश है मैं एकान्त का औगण बाबा धूनी रमाऐं वहाँ बसूँ उस जीवन का क्या महात्म बाबा जो जीवन तेरे पास नही

तर जायेंगें

कसम ये है कि जहाँ तक राह हो हमसफर रहना मैनें तुझे हर मोड पर मुझको अजमाते देखा  वो तीगुने हैं साल मेरे अहसासों के तुझसे यूँ वक्त बे-वक्त भावनाओं को न तोला जाये मैं पत्थर था कि तराशा है एक कारीगर ने मुझे फिर कोई औरंगजैब मुझे पत्थर बना नही सकता एक तेरे छूने भर से रामसेतु की शिला हैं हम तर जायेंगें या कि अहिल्या से जम जायेगें