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Showing posts from October 17, 2021

तू मेरी पहचान है

 कर्तव्यों में भी कर्मों में भी  साथ तेरी यादों का  है  चलता है खामोश सदा  ये द्वन्द मेरी पहचान है  होती कहाँ आशाएं जग में  हर अजनबी हर छोर हैं  कोई अपना मन बांधे है  ये टक मेरी पहचान है  खुशियों में भी दर्दों में भी  साथ तेरी बातों का  रहता है जो दूर सदा  ये फ़ासला मेरी पहचान है  होते कहाँ सब स्वप्न पूरित  हर सुबह हर सफर में  कुछ अधूरे ही सदा  ये राह मेरी पहचान है  एक चीरता है मनन ये  हर रूप में हर साथ में  हो अकेला ये सफर गर  तू मेरी पहचान है 

सम्बन्ध है सतिता

तु मेरा एक वो रिश्ता  जो बन्धन है पतिता का हजारों बार मैं हारूं समर में शेष जीवन का तु मेरा एक वो साया जो सम्बन्ध है सतिता का हजारों बार हूँ पत्थर अमर मैं तेरी ठोकर का तु मेरा एक वो नाता जो निभाना है सतता का हजारों बार मैं उजङु बहाव तेरे किनारों का तु मेरी एक वो मंजिल जो प्रमाण हो मेरे होने का हो अदृश्य मनन मन का तु खण्डहर मेरे बजूदों का  तु मेरा एक वो सपना जो देखा है जगता का हों आखें बन्द जब मेरी तु सपना हो हकिकत का

तेरे नाम

 ये सच जानता हूँ मैं  जो तु कहता है अब मुझसे  मैं तिल तिल यूँ ही जिया हूँ   जानता हूँ तुझे जरूरत नहीं मेरी  ये अहसास है मुझको  जो तु जता जाता है अब मुझसे  मैं पल पल यूँही गिनता हूँ  जानता हूँ तुझे कदर नहीं मेरी  ये पता भी है मुझको  जो तु कह गया अब मुझसे  मैं क्षण क्षण यूँ ही रोता हूँ  जानता हूँ तुझे परवाह नहीं मेरी  ये पता भी है मुझको  ये जन्मों का नहीं नाता  मगर मैं  साल जीवन के  तेरे ही नाम कर आया 

गुस्सा नहीं हूँ

 कभी तो सरहदें अपनी  तु होता लाँघ कर जाता  कभी ख़ाली से पन्नो पर  हमारा नाम लिख जाता  कभी तो बंदिशें अपनी  तु होता तोड़ कर आता  कभी जीवन के आपा में  हमारा हाल ले पाता  कभी तो सीमाएं अपनी  तु होता छोड़ कर आता  कभी होता वो गुस्सा तो  कभी हमको मना पाता  कभी तो जोड़ता मन को  कभी विखराव ठहराता  कभी सहता ये नादानी  कभी बाँहों में भर लेता  वो चुप रहकर जताना क्या  वो दूरी का आलिंगन क्या  वो रूखे से दो शब्दों को  कभी अपना मान कर कहता  मैं आहत हूँ परेशां हूँ  मगर गुस्सा नहीं तुझसे  निभाकर भी अकेला हूँ  कभी दो लब्ज़ कह देना  कभी लिखना वो हाल-ए-दिल  कभी कहना वो राज-ए-दिल  कभी तो पूछना खुद से  कि तुम्हारा हाल कैसा है ?

मुझे तेरी जरूरत है

 तु दुनिया के थपेड़ों से  परस्पर जूझ आया है  एकाकी ही रहा बरसों  खुद को खूब संभाला है  यूँ ढलती ही रही शामें  वो हल्की सी कोई रेखा  छोटी सी मेरी दुनियां  मुझे तेरी जरूरत है  तु अपनों के लिए हरदम  बराबर पर डटा पाया  जीवन जीना कोई तेरा  खुद को ढाल आया है  यूँ कुछ पल की बची रातें  वो अधूरे से कोई सपने  आधी हे मेरी दुनियां  मुझे तेरी जरूरत है  तु ग़मों को झेल आया है  सहजता से निभा पाया  समर्पित वो जवानी है  इच्छाएं मार आया है  यूँ कुछ खोता रहा हर पल  एक बार खुद को पाना है  आधा है मेरा रिश्ता  मुझे तेरी जरूरत है