Posts

Showing posts from November 17, 2019

लाम पर रहे

बदलता तु भी नही  बदलता मैं भी नही  कशिश दोनों तरफ कहता कोई कुछ नही  चल कुछ ऐसा करें की वो जिन्दणी बचे तु तु रहै मैं मै बनूँ  अरमानों की एक याद रहें बुनते सपनों में उलझा  छन्द तारतम्य में न बदला जो पास लगे दूर रहे  मन वाले लाम पर रहे  शहर की बदनाम गली में वो था तो ही रौनक़ सी थी  स्याह सड़कों की शामों पर खामोश ! उदासी डराती रही 

अकेला तो है

यादो मे रहता अजनबी एक शूल सा चुभता है  तिल-तिल सताता तो है पर कभी कुछ कहता नही  जो देखता है मुड़के अक्सर  पर कहीं नज़र मिलाता नही  सोचता वो भी होता होगा  मगर कभी कुछ जताता नही  जो नज़रों मे है हरदम  ज़ुबान मे कभी आता नही  अकेलापन तो उसका भी होगा  साथ कभी कोई देता नही 

अजनबी

दूरियाँ में ख़ामोशी से स्नेह पलता है  ख़ामोशी मे कहीं कोई उन्माद रहता है पहल की कोशिश तेरी  होती नही  सोच तुझसे दूर कहीं जाती नही  गूँगे कब बोल पड़े सूरों की तान पर दुश्मन कब खड़े रहै अपनो के साथ में मनों से दूर  होता नही जो अजनबी  पास जाने की कभी कोशिश होती नही  अपनेपन सोचने को मजबूर करता है  विश्वास सब कुछ थामे से रखता है  जिसने अपनों मे गिना ना ओ अजनबी  रह रहकर सोच को घेर लेता है अजनबी 

तेरे प्रीत की

शाम की लौं पे दस्तक हुई थी कभी  टूटे द्वारों पे आहट हुई थी कभी  गीत बज्मों से निकली किसी पीड पर मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की  खेत की मेंढ पर सिसकियों सी कभी अधखुली खिड़कियों पे तांकती सी कोई   झरने नदियों से निकली किसी आह पर मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की  राहें तकती  कोई राहगर सी कभी  साख के ओट पर सुखती सी कोई  टहनी-पत्तों से निकली किसी ओस पर मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की 

हर अहसास में

तु ‘बन्दगी’ भी में है मन मन्दिर में भी  उन बिछुड़े दोस्तों में उन सुखे बुग्यालों में हर शाम दस्तक देती मन्दिर की उस घंटी में तु दूर तांकती नज़र में तु पास रहती तन्हाई में किताबों के बीच कहीं  सुखी सी याद में  तु ही है अकेले का साथ तु ही हर अहसास में 

समय

कभी समय की मीनारों पर  अवशेष बना पाया खुद को रजमाटी में सम्मिलित होता बीज पड़ा पाया खुद को  दें न सकूँ कुछ त्याग जगत में बस जतन जुगाता कलरव हो तुम भी हो और मैं भी हूँ  बस अलग मंज़िल पर राह एक हो