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Showing posts from October 29, 2023

तेरे साथ की

मैं गंगा सा प्रवाह चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे बहना चाहता हूँ हो उत्तुगं शिखर कोई या गहरी सी कोई घाटी मैं तुझमें बस के तेरा होना चाहता हूँ मैं राह-ओ-राह भटकना चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे मंजिल चाहता हूँ हो सबसे मुश्किल कोई या आसान सी हो कठिनाई मैं तेरे नाम से तर जाना चाहता हूँ मैं छन्द-ओ-गीत लिखना चाहता हूँ सदा तेरी कहानी का किरदार चाहता हूँ हो अधूरा या वो छोटा ही सही लेकिन मैं तेरे साथ की सम्पूर्णता चाहता हूँ

प्राण

हम पत्थरों में प्राण भरते हैं निरन्तर मिट्टी को गाय को माँ कहकर पूजते हैं निरन्तर स्नेह को परिभाषित करे वो कान्हा देव है मेरा गले बिषसर्प  डाले है वो ही महादेव है मेरा  वो जूठे बैर शबरी से और सूरज भी निगल लूँ मैं पिता की साख पर घर छोडकर वनवास ले लूँ मैं मैं धरा को चीरकर रणक्षेत्र में बाणगंगा सा प्रवाहित उत्ताप शिखरों पर भी अनछुआ सा काकभूष्डी हूँ मैं राधेय हूँ कौन्तेय हूँ  शिखण्डी और रणछौड हूँ शत्रू की विजय सफल हो 'रामेशरण' का रावण हूँ यज्ञ की अग्नि जनति मै भू धरा वैदेही हूँ केवट सा दास हूँ सुदामा सा मित्र भी मै कालचक्र का काल हूँ समय का ठहराव भी हूँ सनातन मैं सदा निष्काम भी निष्प्राण भी मणिकर्णिका की अग्नि हूँ  त्रिरजुगी का यज्ञ भी शून्य का उदभव है मुझसे अन्नत का आसार भी मै मिलूँगा हर समय तु संगम की गंगा मेरी मै बहुँगा संग तेरे तु प्राण की वायु मेरी तु आदि है तु अन्नत है तु राधा मेरी कुन्ती तु ही स्नेह का अमरत्व तु मेरी कविता का हर शब्द तु

रिश्तों को अमरत्व

हे! सूर्यदेव हे! गंगा माँ हे रश्मिरथी हे कुन्ती माँ मैं अपराधी अन्यायी मैं स्नेह ने एक कर्ण जना था कहाँ था साहस सच का और लोकलाज का भय था लिंग भेद का ज्ञान नही था स्नेह ने एक कर्ण जना था कहाँ बनेगा अधिरथ मानव साथ  स्वयं की लाचारी परित्याग का भाव नही था स्नेह ने एक कर्ण जना था सीमाऐं साधी थी खुद को विश्वासों के कब कदम थे डगमग एकदूजे का साथ परस्पर  स्नेह ने एक कर्ण जना था सच कडवा था साथ अडिग था दुनियां वही और जबाब नही था निश्चय दामन थामा हमने  स्नेह ने एक कर्ण जना था माँ की ममता त्याग पिता का इन रिश्तों का शानी कब था पत्थर दिल अधरों पर ताले स्नेह ने एक कर्ण जना था रिश्तों की लाचारी बरबस खामोशी ने त्याग किया था प्रण साथ कर गया जीवन तेरे स्नेह ने एक कर्ण जना था जाते जाते अहसास दे गया हमको दो से एक कर गया रिश्तो को अमरत्व दे गया स्नेह ने एक कर्ण जना था