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Showing posts from July 11, 2021

एक तेरे भरोषे

 एक तेरे भरोषे पर कई बुनियाद रखता हूँ  कुछ कागज़ के टुकड़ों पर कहानी एक रचता हूँ  ये आशा है कभी होगी कहानी पूरी जीवन की  न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर मकामों पर  एक तेरे भरोषे पर कई उम्मीद रखता हूँ  कुछ सपने जीता हूँ कुछ सपने बुनता हूँ  ये आशा है कभी होगी मनों की बात पूरी भी  न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर बात पर  एक तेरे भरोषे पर कई रातें बचाता हूँ  कुछ रातों को जगता हूँ कुछ में गुनगुनाता हूँ  ये आशा है कभी होंगी संग एक चांदिनी भी  न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर अँधेरे में

उपहारों की रात

 उपहारों की रात है  मन में बसा तारा कोई  कोई तेरे मन बसा है  है किसी मन तु बसा  बाँट ले अपनों से सब रंग  मन चढ़ा है रंग कोई  कोई खुशियों में है शामिल  शामिल रहे तु हर रात में दे दुवाएँ  स्नेह भी सब  मन में रहे प्रणयी कोई  कोई तेरे साथ शामिल  शामिल रहे तु हर बात में  साथ देना सबका सब तु  छोड़ देना ये कसम कोई  कोई हो हर संग मै शामिल  शामिल रहे तु इस साँस में 

रंग भरना तुम

 चाहे तो रंग भरना तुम या छोड़ देना खाली सा  चित्रफलक तु जीवन का हर रंग समाये तुझ में हैं  कोरा ही रह जाना है इस रंगो की दुनिया में  तु चित्रकार इस जीवन का हर साँस समाये तुझमे है  डूबते सूरज पर कोई रंग चढ़ा कर दे जाना  तु आसमान इस जीवन का इंद्रधनुष सा बना जाना  खेतों के इन कोनों पर बीज कोई छिड़का जाना  तु फसल आस की बगिया में तार बाड़ सा कर जाना  पत्थर मन पर कोमलता की आस छोटी सी दे जाना  तु शिलालेख  इस जीवन का शब्द कोई गढ़ सा जाना  चाहे तो रंग भरना तुम या छोड़ देना खाली सा  चित्रफलक तु जीवन का हर रंग समाये तुझ में हैं 

चाहत

 चाहत थी जो दबी सी कहीं वो जो बीज रहा फलता ही गया साजन से जो कहीं न गयी  उसको जग ने हर राह कहीं  आंसू बहा गयी प्रेम मै जो  उस चाह को भी तो भूला नहीं पाए  कागज़ मै जो रहे हर वक्त  प्रेम वो भी जाता नहीं  पाए  कागज़ देकर आप चले  हम कागज़ मन से हटा नहीं पाए  कागज पर लिखते रहे हम  चाह कभी हम पढ़ नहीं पाए  घूमते थे जग के हर कोने  उस मूरत तो मन से हटा नहीं पाए  आखों मै थी एक मीरा बसी  किसी और को हम  बसा नहीं पाए  चाह नहीं थी ये सोच कोई  बस होता गया हम रोक न पाए  श्याम खड़ा था जो संग मेरे  ब्रजरानी की आस छुड़ा नहीं पाए  चाह मिली आशीष रहा कोई  दूर हिमालय से डमरू बजाये  थी  वो नसीब मै चाह तेरी   कोई मंथरा कोप सजा नहीं पायी  पाऊ तुझे या की खो भी जाऊ  भूलने की अब राह नहीं है  बांसुरी वाला है साथ मेरे  मेरी चाह को कोई डगा नहीं पाए 

तुम आ

 थे अलग रहे जो हम तुम आ खुद में हम खो जायें हम दो धार मिले नदियां की और गंगा हम बन जायें थे अलग चले जो हम तुम आ संग कभी  चल जाएँ  हम दो राह मिले पर्वत की और मंदिर घूम भी आएं  थे रहे सदा दूरी में आ पास कभी मिल जाएँ  मंजिल एक रहे और समुन्दर में मिल जाएँ  थी अलग रही पहचान सदा आ एक पहचान बनाएं तत्व रहे जो अलग सदा मिटटी पानी सा घुल जाएँ  आ तु मेरी सांसे बन जा मैं  खुशबू तेरे तन की  तु मुझमे घुलता जायें और सांसे बन जायें जीवन की 

मंजिल रही सदा

 जो बहा है एक आँसू इस जीवन को सोच कर हर मूल्य से भी बढ़कर एक जीवन दिया उसने  उस आखिरी मकां का दिनकर रहा सदा से  हर राह की कहाँ तक  मंजिल रही सदा से  जो लगा है मन हृदय से इस जीवन को सोच कर हर ख्वाब से भी बढ़कर एक ज़ेबा दिया है उसने  हर आखिरी बजु का अनुनय रहा सदा से  हर चाह की कहाँ तक मंजिल रही सदा से जो क़रार कर गए हैं इस जीवन को सोच कर हर आमोद से भी बढ़कर एक ध्येय दिया है उसने हर आखिरी आकांक्षा का अनुग्रह रहा सदा से   हर कल्पना की कहाँ तक मंजिल रही सदा से एक सोच का हैं नाता घरती की पीड़ मन में  इस बार भी वैदेही क्या धरती समां रही है  तू ब्रह्म वेग गंगा भगीरथ सी संकल्पना है  मैं देव तो नहीं हूँ पर आराध्य शिव सदा से।।। 

डरना है क्या

 बाँट लेते हैं हम ख्वाब का हर शहर  जानते हैं अखिल ख्वाब होते नहीं  फिर भी बचपन में तोड़े हैं तारे कभी  चाँद से भी कोई रिश्तेदारी रही  आज भी मन ललकता है उस ख्वाब को  फिर भी सपने सजाने से डरना है क्या  ? उड़ते जाते हैं हम बादलों से परे  जानते हैं नई सृष्टि होती नहीं  फिर भी दादी की कोई कहानी सुनी  उस परी से एक  नातेदारी  रही आज भी मन में रहती वो कहानी कहीं  फिर बादलों मै उड़ने से डरना हैं क्या  ?  कहते जाते हैं हम सीमाओं से परे  जानते हैं रिश्तों की मियाद होती नहीं  फिर भी सरहद के उस छोर अपना सा कोई  उस अजनबी भी से एक खातेदारी रही  आज भी मन में रहता हैं वो परदेशी कहीं फिर सरहदों ने पर जाने से डरना हैं क्या ? साथ दे दे  घड़ी भर जब तलक चल सकें  एक दिन दुनियां छूट जानी है यहीं 

आखिरी

 हम नदिया की धार हैं हमको तो बह जाना है  बाँध सके तो बाँध भी लेना घटती सरिता धार हैं  जीवन का हर सार लिए तु गहराहता  वारीश है  जब हों समर्पित आखिरी सांसे तु अस्तित्व रहे मन का हम ओझल सी आग हैं हमको तो बुझ जाना है  जला सके तो जला भी जाना राखों का अंगार हैं  जीवन का हर मर्म लिए तु अपनाता आकाश है जब हों प्रवाहित आखिरी आहुति तु अस्तित्व रहे हव का हम पिघलती  सी बर्फ हैं हमको तो गल जाना है  समेट सके तो समेट भी लेना फैला नीर अपार है  जीवन की हर सीख लिए तु चमकता प्रकाश है  जब हों आँखे बंद आखिरी कफ़न उढ़ाये तु जीवन शव का