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Showing posts from May 8, 2022

रच बस जायें

 समय बिताना साथ तेरे  तेरी बातों में खो जाना  बदमाशियां हम बाटें आ एक हो जायें साथी  एक सरिता मिले समुन्दर  परछाई सी  साथ हमेशा  ये बेल बढ़ें तरुवर पर आ साथ बढ़ें ओ साथी  सन्नाटों में गहरी सांसें  खुशबू तनमन रच जायें  मन की आवाज़ सुने तू  आ सर रख दे सीने साथी   बरसों का कोई सपना  रच बस जायें अपना  लम्बी राहों को तकना आ चल दूर चले ओ साथी  उम्मीद लगा बैठे हैं  नदिया तीरे साथी  चल बांध ले सेतु मनों के  एक दूजे मैं खो जाएँ 

तेरे दर

 कब चार दिन माँगे थे  समय तेरा कुछ माँगा था  खुद के जीते जीवन को  तेरे दर पर फैलाया है  एक दुनिया सिकुड़ती सी  गहराई जीवन पाता सिमटती सी आशाएं  तेरे दर तक जाती हैं  कब उत्ताप मनों का माँगा  सानिध्य रहे उस खुशबू के  एक मद्धम दिखता चंदा  तेरे दर तक जाती किरणें एक आशा मन बढ़ती सी  संग सफर कुछ दूरी  एक सर रखती सी गोदी  तेरे दर तक जाती उम्मीदें  आ हाथ बढ़ा दे भगवन  चल ले चल नदियां पारे एक सरपट दौड़ता जीवन  तेरे दर पर ठहरी नजरें

समाया तु है

कच्चे मकां बने तो हैं   कुछ सुदृढ़ नीवों पर  तेरी यादों की बूँदें बारिश मेरा इंतहां लेती हैं  बरसों के सजाये सपने  आसान नहीं है हक़ीक़त  तेरी यादों की शामें खालिस  मुझे तन्हा कर जाती हैं  कागज़ है कलम, दावतें  सब लिखना आसान नहीं है  तेरी यादों की छुपी शहनाई  मुझे आगोश समां जाती हैं  चाहत है राह, मुसाफिर  मिलना तेरी हाँ में बसा हैं  तेरी बेबजहों की रुस्वाई मुझे हरा सदा जाती हैं  तु मुझमे हैं कहीं मेरा  तेरा ही अब अंश हैं मुझमें मिले, मिलें न अलग है रग रग में समाया तु है 

सपने लिखता हूँ

 कुछ तेरी यादों को लेकर  कुछ अपनी को समेटकर  झोला बांधता हूँ अब  चल घर को चलता हूँ  तुम कब माने ये हक़ीक़त है  मेरे हाथों में लकीरे हैं  भाग्यों की दशाओं में  चल तुझको ढूँढ़ता हूँ मैं  बचपन एक बैखौफ था  अब डर के साये जीता हूँ  मैं रातों रात जागकर  किताबों में सपने लिखता हूँ  दरवाजे  सारे बंद से  मैं रास्ता एक बनता हूँ  अब वापस तो नहीं जाना  बस तुझपे भरोसा रखता हूँ  कुछ सपने अपने तुझको देकर  कुछ कुछ तेरे मैं रख लेता हूँ  आशाएं  बांधता हूँ अब  चल संग तेरे चलता हूँ अब 

न जाने

 मैं रचता एक संसार  न जाने क्या होगा  इस समर्पण का इतिहास  न जाने क्या होगा  जब होता है आभास  कहीं है तु हृदय के पास  मेरे एकाकी चिंतन का  न जाने क्या होगा  मेरा सिमटता एक संसार  न जाने क्या होगा ये काल खंड अहसास  न जाने क्या होगा मेरा तुझपर है  विश्वास  तु ही तो इस जीवन का सार  मेरे सिमित सोच विचार  न जाने क्या होगा मेरा होता है मन बेगार  न जाने क्या होगा इस जीवन का अभिसार  न जाने क्या होगा

बदमाशियां ओढ़े हुए

 मैं जी रहा बचपन हूँ   परिपक्वता तोड़े हुए  खुशियों को साथ लाया  बदमाशियां ओढ़े हुए  एक रंग भर लाया हूँ  उन यादों को समेटकर  जीवन को फिर जीता हूँ  बदमाशियां ओढ़े हुए मैं जी रहा एक आशा  अभिलाषाएं बढाकर  सपनों को फिर सजता हूँ  बदमाशियां ओढ़े हुए एक लक्ष्य को साधा है  उम्मीदों के जहान पर  बढ़ता जा रहा हूँ  बदमाशियां ओढ़े हुए बना रहा रेखाएं  अभाग्य के हाथों पर  संवारता जा रहा हूँ  बदमाशियां ओढ़े हुए सच हो जाये सपने  एक दूजे मैं समाकर  मैं तुझमे समां रहा हूँ  बदमाशियां ओढ़े हुए