सपने लिखता हूँ

 कुछ तेरी यादों को लेकर 
कुछ अपनी को समेटकर 
झोला बांधता हूँ अब 
चल घर को चलता हूँ 

तुम कब माने ये हक़ीक़त है 
मेरे हाथों में लकीरे हैं 
भाग्यों की दशाओं में 
चल तुझको ढूँढ़ता हूँ मैं 

बचपन एक बैखौफ था 
अब डर के साये जीता हूँ 
मैं रातों रात जागकर 
किताबों में सपने लिखता हूँ 

दरवाजे  सारे बंद से 
मैं रास्ता एक बनता हूँ 
अब वापस तो नहीं जाना 
बस तुझपे भरोसा रखता हूँ 

कुछ सपने अपने तुझको देकर 
कुछ कुछ तेरे मैं रख लेता हूँ 
आशाएं  बांधता हूँ अब 
चल संग तेरे चलता हूँ अब 


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