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Showing posts from March 17, 2019

मध्यस्थ

वो जो बने रहे मध्यस्थ तुम्हारे और हमारे बीच वो बीज बो गए शंकाओ के यहाँ भी वहाँ भी   ये अलग बात है तेरी नज़रो पर गया हूँ जब -तब   नाराज़गी ही सही पर अपने लिए सम्मान पाया.. .......................... बाघम्बर ओढ़े ढोंग करना न सीखा है कभी  खुला पन्ना रहा जीवन पढ़ सके तो पढ़ लेना  यहाँ रिश्ते सम्मानों के हैं किसी लालशा के नहीं  शंकाओ के अवरोध गिरने ही है एकदिन .......

सम्मान

नाम नहीं कोई दे पाया तुझसे मेरा मन का रिश्ता दोस्त, सखा, अपना या पराया जो भी है सम्मान से है । कोई चाहत मन मे ना हो तुझसे पाना खोना कैसा  तेरे लिये दायरा कैसा जो भी है सम्मान से है तुझ तक कोई सीमाएँ न हो तु हर बन्धन से है मुक्त साथ चले या नज़र नज़र चुरा ले जो भी है सम्मान से है .....

स्वीकार है

तेरी नाराज़गी स्वीकार है मुझे  तेरा उदास चेहरा परेशान करता है  जीतने की ज़िद मुझे नहीं है दोस्त! तेरी असहजता ख़ुद को नज़र मे गिरा देती है। मैंने बेड़ियों मे नहीं बाँधीं है सीमाऐं विश्वासों की न रिश्तों की लकीरें यूँ अदृश्य हो तु स्वछन्द उड़े दूर गगन तक वो पंख बन सकूँ  तेरा दायरे मे मेरे ज़िक्र न हो वो बात बन सकूँ   

कपोल

स्नेह की नमी मिले  गम्भीरता का साथ हो  हँसना इतना भी मुश्किल नहीं  झुरमुटों की छांव मे बढ़ती हुई कपोल हूँ  ......... घरों से दूर हम जो हैं  मनो का दूर एक रिश्ता हो यकिं तुझपे इतना मुश्किल भी नहीं तेरे सहारे बढ़ती एक बेल हूँ ......

रंग

सीधे पेड़ों को अक्सर गिरते देखा सुखे जंगलों की आग को फैलते देखा   बरसाती गदेरे का शोर  और झिंगुर की आवाज़  फिर भी इन सब मे एक रंग देखा  ........... चढ़ते पहाड़ों पर झुका हूँ हरदम    चमकीले बर्फ़ मे आँखों को धुँधला किया है  अपनो के दर्द ने सहमाया है मुझको तु ही है जो बेरंग बना बैठा है दोस्त!   वरना पत्थरीलें पहाड़ों मे इन्द्रधनुष देखा है हमने..

आवाज़

उन उंचें पहाडों ने सिखाया है मुझे कि मन की आवाज़ लौटकर आयेगी टकरायेगें बदहवास अभिमानों के दंश  पर स्नेह की फ़सल फिर लहरायेगी... तेरे बदलने की सारी कोशिशें  नाकाम न हो ये दुआ है मेरी पर फिर उन्हीं पहाड़ों ने सिखाया है हर बदले मौसम के बाद एक सुहानी शाम आयेगी....

तेरी कमी

तेरी नाराज़गी खलती है दोस्त उदास सा दिखता है चेहरा तेरा हँसी तेरे होंठों पर पहले जैसी नहीं  तु पास हो न हो तेरी कमी सी खलती है  ये न भुल तु बह चला है जिनके संग  उन्हें गोते खाना सिखाया था हमने  तुझे मुझसे दूर करके जो हँसते है हरदम उन्हें हमारी नजदिकियां खलती है। कभी देखना यादों के उन झरोखों से किसी रिश्ते मे नहीं थे पर एक डोर मिलेगी उन दरख़्तों मे एक सम्मान मिलेगा  सुखी यादें ही सही  मॉ की हल्दी वाली एक माला मिलेगी....

पीपुल्स यु मे नो

जाने क्यों तु हरदम मन मे रहता है  ख़ामोश रहू या विचारों मे घिरा रहूँ  कोई मेरे तेरे बारे मे बात करते नहीं  और उसपर तु मुँह फुलाये सा रहता है  फिर भी तेरी क़रीबी का आलम ये है  अब तो ‘पुपील्स यु मे नो’ करके  सोश्यल मिडिया भी चिढ़ाता है  😀😀😀😀