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Showing posts from August 8, 2021

मेरे हर अर्थ हैं तुमसे

 वो न भी हो किताबों में  ख्यालों में निगाहों में  मेरे हर और पसरा है  ख़ामोशी बनके यादों में  वो न भी चल सके संग में  राहों में मकमों में  मेरे हर साथ रहता है  उदासी बनके ख्यालों में  वो न भी पूर्ण हो संग में  मन में या उमंगों में  मेरे हर शब्द रहता है  इशारा एक बातों में  वो न भी हो जीवन रण में   संघर्षों में या मोक्ष  में  मेरे जीवन का हिस्सा है  चलती एक सांसों में  तू जो न हो तो मैं कब हूँ  मेरा हर कर्म है तुझसे  मैं जो कह दूँ या जो लिख दूँ मेरे हर अर्थ हैं तुमसे 

तुझे हक़ है

 मैं कुछ दूरी चला आया  उम्मीदों का सफर तुझसे  हो वो मन तो चल देना  नहीं तो छोड़ देना तुम  मैं कुछ सपने बुना आया  ख़ुशी का गांव है तुझसे  हो वो मन बसा देना  नहीं तो तोड़ देना तुम  मैं घर कुछ यूँ सजा आया  उजालों की चमक तुझसे  हो वो मन बिखर जाना  नहीं तो उजाड़ देना तुम  मैं जीवन यूँ ढल आया  आदत हर जुडी तुझसे  हो वो मन तो जुड़ जाना  नहीं तो तोड़ देना तुम  तुझे हक़ है तू जो भी कर  उठेगी ये नज़र तुझ पर  बढ़ाना है बढ़ा देना  नहीं तो तु गिरा देना 

जीवन सी परछाई

 कलकल करता जीवन सरहद सी लाचारी  रूकती साथ मेरे है समयों की तन्हाई  खोना पाना जीवन दर्दो की परछाई  बहती साथ मेरे हैं यादों की तन्हाई  डगमग बढ़ता जीवन रिश्तों की दुश्वारी  चलती साथ मेरे है सपनों की तन्हाई  कदम मिलता जीवन राहों की कठिनाई  दिखती साथ मेरे है सांसो की तन्हाई  टिम-टिम करता जीवन जुगुनू सी वो निशानी मिलती  साथ मेरे है रजकण की तन्हाई  सपने बुनता जीवन डर की एक अंधियारी  बढ़ती साथ मेरे है आशा की तन्हाई  सांसो का ये बंधन डोरों की खिचाई  जुड़ती साथ मेरे हैं जीवन सी परछाई 

सांसो की खुशबू

 मैं रखता हूँ समेटकर  तेरी ताजगी की टोकरी  सांसो की खुशबू लेकर राह राह उड़ता  रहा   थके परेशां लोगों को  उड़ती चलती धूलों को  खुशबू मेरे आँगन की  फूलो सी एक टोकरी  दुःख दर्दो के तानों को  खोये बिछड़े रिश्तो को  खुशबू फसल घंघरिया सी  सरसों की एक चौकरी  हंसी ख़ुशी के रंगो को  कोमल सकुचाई देहों को  खुशबू उस कस्तूरी सी  जंगल की एक बाबड़ी  गुमशुम सी आवाजों की  गहरी गहरी सांसो की  खुशबू तेरे तन मन की  सोंधी गीली मिटटी सी  

मिलजुल बैठे

 शीतों की लम्बी रातें  राग बसंत भरी उमडायी एक आने का ख्याल हो  एक जाने की दुस्वारी नदी सूखती कब अच्छी है  कब उसमे भरी उमडायी  शांत सरल गंगा जल हो  अनवरत बहे भावों की बानी  खाली खेत कहाँ अच्छे हैं  उसमे कब खर-पतवार उगाई  हरी भरी कोई फसल उगी हो  माली के बहुबल की रवानी  कटते जंगल कब अच्छे हैं  कब किसने ये आग लगायी  कुनवे सारे मिलजुल बैठे  जंगल में मंगल हो कहानी  रिश्तों में दूरी कब अच्छी  कब मन में ये जहर घुला है  त्यागों का मतलब जीवन है  और अपनों की साथ निशानी 

सम्पूर्णता

 कभी ठहरा कभी गहरा  कभी बहता लगा जीवन  मैं यूँ तो एक तमाशा था  मेरी पहचान है तुझसे   कभी बहका  कभी रोता कभी हसता लगा जीवन  वो चेहरे लाख ओढ़े थे  मेरी बदमाशियां तुझसे  कभी पाना कभी खोना  कभी जो स्याह था जीवन  मैं यूँ तो एक सिफर ही था  मेरा अब भाव है तुझसे  तमन्ना कब की पा लूँ सब  सदा बे अर्थ था जीवन  रहा जो सिर्फ आधा है  मेरी सम्पूर्णता तुझसे