मिलजुल बैठे

 शीतों की लम्बी रातें 

राग बसंत भरी उमडायी

एक आने का ख्याल हो 

एक जाने की दुस्वारी


नदी सूखती कब अच्छी है 

कब उसमे भरी उमडायी 

शांत सरल गंगा जल हो 

अनवरत बहे भावों की बानी 


खाली खेत कहाँ अच्छे हैं 

उसमे कब खर-पतवार उगाई 

हरी भरी कोई फसल उगी हो 

माली के बहुबल की रवानी 


कटते जंगल कब अच्छे हैं 

कब किसने ये आग लगायी 

कुनवे सारे मिलजुल बैठे 

जंगल में मंगल हो कहानी 


रिश्तों में दूरी कब अच्छी 

कब मन में ये जहर घुला है 

त्यागों का मतलब जीवन है 

और अपनों की साथ निशानी 

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