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Showing posts from February 21, 2021

मौन हैं

  मौन कहाँ कुछ सुन पाया हैं  यादों के वीरानों में  तुम भी गुमशुम हम भी गुमशुम  लम्बी उम्र पड़ी है देहरी पर  मौन कहाँ कुछ कह पाया है  ख़ामोशी के आलम में  तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं फिर बसंत खड़ा है देहरी पर  मौन कहाँ कुछ लिख पाया हैं  कागज के खाली ढेरों  में  तुम भी खाली हम भी खाली  फिर सुनी शाम है देहरी पर 

उन्मादों का एक सफर

  तृण तृण ढूंढ मचाती  आशा  खाली घर के सन्नाटे में  मन के लाक्ष्यागृह में जलता  उन्मादों का अपनापन है  धूं धूं जलकर खाक हुई जो सूखे खर की आग बढ़ी है  मन की मृगतृष्णा में चलता   उन्मादों का एक सफर  है कण कण रज का कानन सुना  कोने पर उम्मीद दबी है  प्रभारों के बोझ में दबता  उन्मादों का एकाकीपन  है