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Showing posts from August 25, 2019

जो एक बार

यूँ न हुआ कभी कि  दोस्तों में दुश्मन मिले हों वो लोग और ही थे,  जो एक बार पास लगें मन से दूर हो न सके यूँ तो नाराज़गीयां कभी  दोनों तरफ भी रहीं होंगीं  वो फसानें और ही थे,  जो एक बार छेड़े गये मन से कभी भूलाये न गये यूँ न हर बार यादों की सुनहरी रवांनीयां रही होगी  वो पल कुछ और ही थे, जो छूकर गयी एक बार  मन के रुबरू महक बन गये

प्रेम के गीत

नदियों नालों झरनो से  जब आवाज़ सुनायी देती है  यादों की विरान स्मृतियों में  कोई मनन अपना सा लगता है  गुमशुम नज़रें  जब स्नेह रचती है  मैं  मधुरिम प्रेम के गीत  लिखता हूँ खेत पहाड़ों खलिहानों से  जब तीतर तान लगा बैठा हैं  सूनसान पड़े उन ख़ाली राहों में वहम की कोई कदमचाप सुनी है घूरती मुस्कुराती वो नज़र लगी हो  मै मधुरिम प्रेम के गीत लिखता हूँ  मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों से  जब घण्टे घड़ियालों की नाद बजी है तपते पत्थर के कंच कणों मे  आशा की कोई चमक उठी हो  सच्चाई से सादगी वाली आश लगी हो मै मधुरिम प्रेम के गीत रचता हूँ 

तस्वीर

नदी सा चुपचाप बहता रहा  कभी समुद्र सा शान्त दिखा उमड़ते गरजते बादलों में आशाओं का पहाड ढका रहा  सबकुछ तो वोही है  कोने मे किसकी कमी है चहकती बसन्ती सुबह में ये कौन अलसायी बेल है  दीवारों के चित्रों पर धूल है साफ तस्वीर वो किसकी है मन के शान्त किसी कोने में  वो जमती बर्फ़  किसकी है 

यात्रा के वृतांत

दुनिया की दौड़ मे  कुछ पीछे रह गया कुछ छुटा सा लगा  तो कुछ छोड़ दिया वरबस उलझे शहरां मे  कुछ द्वन्द यूँ  रहा  कुछ भूल सा गया  कुछ भुला सा दिया  यात्रा के वृतांतो में पड़ाव कुछ यूँ आये  कहीं सुस्ता से लिये कहीं सरपट दौड़ लिये  महमां शहर मे यूँ आयें एक बस्ती बसती लगी  कुछ ख़ानाबदोश निकले कुछ शरणार्थी बने रहे