Posts

Showing posts from April 21, 2019

मुझे दुनिया से क्या

कोई ताबिर लिखे सफलताओं की कोई छू ले उपल्बधियों के मक़ाम  एक तेरे जाने का ग़म है मुझे दुनिया से क्या कौन रुका है समय के बहाव मे कौन बहा है भावनाओं की बाढ़ मे एक तेरे खोने का डर मुझे दुनिया से क्या कौन अपना हुआ स्वार्थ की यारी में कौन बढ़ते हुए को सहारा देता है यहाँ  एक अपनो से तेरी मजबूरी मुझे दुनिया से क्या 

वो जो हैं

तेरी नज़दीकियों का वो डर अब दूरियों का  ख़ौफ़  मुसाफ़िर ही तो है हम  वो जो है सबकी उम्मीदों का कल  तुझे सुनने की वो लगन इन्तज़ार कहने की बारी का अक्सर मौन ने ही बात की मौन से  वो जो हैं अलग झुण्ड सबके   तुझसे सामने की असहजता वो आशाओं की खोज ये रिश्ता भी रहा कुछ छांव धूप  वो जो हैं सबकी प्राथमिकताओं के रुप

कभी पूछता तो

कभी पूछता तो जानता मेरी बदमाशियां तु सुनता रहा सबकी और मेरे लिए सोच बनाता रहा कभी सामने बैठकर दो बातें तो करता जानता कि कुछ अरमान है जिसे तूने देखा ही नहीं कभी आता घर के अंदर तो देखता मेरे अांगन मे तेरे सम्मान के सिवाय कुछ भी नहीं  बाते बहुत थी तुझे बतानी कभी जता भी न पाया जो तु समझा है मुझे वो एक नया ही रूप है एकाकी हैं जो  रिश्ते वह अपनापन है तु कभी पाना नहीं चाहा जिसे वह सम्मान है तु पहाड़ो से निकला हूँ किसी इंद्रधनुष कि चाहत नहीं मेरा मक़सद दोस्तों का कुनवा बड़ा करना था तुझे जोड़कर .........

तेरे चले जाने से

ये दिन जो तुझसे शुरु हुआ  ख़ुशियों से भरा ही रहा  ये तेरी मुस्कुराहट का असर है दोस्त तु सोचता है तेरे रुठने से क्या होता है ये अनकहा अपनापन जो है  मन के बहुत क़रीब ही रहा  अपनो मे ही रहा है हमेशा तु दोस्त तु सोचता है कि तेरे नही होने से क्या होगा ये ख़ामोशी मे भी जो बात तु करता है  शोर मे हूँ हरदम पर तुझे सोचता हूँ  विस्मृतियों मे भी तु ज़हन मे रहता हे हरदम और तु सोचता कि तेरे चले जाने से क्या होगा 

मन तक

वो संजीदगी वो सच्चाई तेरी  आज भी मायने रखती है उतनी ही चेहरों के भाव बदलने से कुछ नही होता ये मनों की बात थी मन तक ही रहने दो वो नजदिकियां अब वो दूरियाँ यहाँ  आज भी बन्धन मे बाँधे हुए है तुझसे  साथ छूट जाने से सबकुछ नही छूटता ये बेस्वार्थ की बात है मन तक ही रहने दो वो हँसी जो ख़ामोशी है चेहरे की आज भी खिंचती है तेरी ओर  मौन रहने से बातें कब बन्द हुई ये नज़र की बात है बस कहने दो उन्हें ......

तुझे खोने का ग़म

ये शायद अपने को साबित  करने की कोशिश ही थी  जिसमें मै खुद को हार कर तुझे जीतने सा चला था  चुनौती थी ये मेरी अपनेआप को बाँधना चाहता था वो अपनापन तुझे खोने के डर मे मै अपने को भूलता ही रहा  आज ये आलम है दोस्त न तु अपना है न मै मै रहा पाने की तुझे कभी कोई कोशिश नही की पर तुझे खोने का ग़म जरुर है दोस्त 

छटपटाह

सपने उड़ान तो लगा देते हैं मनो के इच्छाओं की छलांग कई बार सीमाएं लाँघ देती हैं पर उड़ नहीं पाती है खुले आसमान मै कुछ रिश्ते कभी रिश्ते नहीं होते फिर भी अपनापन बांधे सा रखता है कई बार छटपटाह सी होती है फिर भी मन उड़ना नहीं चाहता 

शायद मै

ये देख ना पाया कि दिन लम्बे हो गये हैं रिश्ते धरती गगन के कुछ तीखे हो गये  शायद मैं अपने को साबित करता ही रहा और तु मेरे अस्तित्व को कुचलता ही रहा.... झुका हूँ टूटा हूँ जब ज़रूरत हुई है  सम्भला हूँ खड़ा हुआ हूँ दौड़ा हूँ सरपट तुझ पर यूँ रुककर हारा नही था और तु रुश्वाईयों की कस्ती दौड़ाता रहा है सफ़र अवसान पर है यादें धूमिल हो ही जायेंगी लौटी है दुनियाँ लौटे हैं बसन्त सब ही मै बनाता रहा वो पुल संवेदनाओं के  तु हर बार किवाड़ें बजाता ही रहा है......

कभी यूँ हो

कभी तु लिखे मैं बस पढ़ूँ  तु कहे मै सुनता रहूँ  मै मिटाऊँ तु सोचता रहे  कभी यूँ हो  तु बेचैन रहे मै बेख़बर सो जाऊँ  मै जाने को कहूँ तु रोक दे नाक जो फुलाऊँ तु मनाते रहे ठिठके न क़दम तो तु टोक दे कभी यूँ भी हो मै नज़र फेर लूँ तु बार बार देखने आये तेरी तरह मेरी कमी हो तुझको कभी मै भी तेरे अपनो मे गिना जाऊँ  मेरी बराई पर  तु लड़ ले सबसे कभी यूँ भी हो  मेरे दोस्तों मे मै भी तुझे गिराता जाऊ